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कृतज्ञता ज्ञापन इस प्रयास को मूर्त रूप देने में जिन सहृदयों का सहयोग प्राप्त हुआ है, उन सभी के प्रति विनम्र कृतज्ञता ज्ञापित करना मेरा अपना पुनीत कर्तव्य है। सर्वप्रथम मैं उन आदर्श आप्त महापुरुषों के प्रति विनयावनत हूँ जिनके उपदेश आज भी समस्त प्राणी मात्र के लिए मार्गदर्शक हैं।
प्रस्तुत शोधग्रन्थ में जिन आचार्यों, विद्वानों, विचारकों, लेखकों और गुरुजनों का सहयोग प्राप्त हुआ, उन सभी का आभार व्यक्त करना मैं अपना कर्त्तव्य समझती हूँ।
जिनकी अदृश्य कृपादृष्टि निरन्तर बरसती रही, उन चारों गुरुदेवों के चरणों में अनन्तानन्त वन्दन।
- बहुमुखी प्रतिभा के धनी, मेरी अनन्त आस्था के केन्द्र, मेरी जीवन धारा के दिशा निर्णायक, प्रव्रज्या प्रदाता प.पू.आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. की दिव्य कृपा से ही मैं प्रस्तुत कृति को पूर्ण कर सकी हूँ। इस मंगल अवसर पर मैं आपश्री के चरणारविन्दों में अहोभावपूर्वक नतमस्तक हूँ।
परमोपकारी, प्रज्ञामनीषी, मेरी असीम श्रद्धा के केन्द्र, जिनकी पुनीत प्रेरणा का अजम्न स्रोत सतत बहता रहा, उन्हीं परम वन्दनीय प.पू. उपाध्याय प्रवर गुरुदेव श्रीमणिप्रभसागरजी म.सा. को इस अवसर पर मैं भावपूर्वक वन्दन करती हूँ। प्रस्तुत कृति आपश्री के असीम आशीर्वाद का सफल है। ___महामनस्वी, वात्सल्यवारिधि मेरे अग्रज श्री प.पू. पं. प्रवर श्रीकीर्तिचन्द्रविजयजी म.सा. एवं प.पू. श्रीकीर्तिदर्शनविजयजी म.सा. की कृपा से ही यह कृति अल्पावधि में पूर्ण हुई है। वस्तुतः यह आपश्री के आत्मिक आशीर्वाद का ही प्रतिफल है।
चारित्र में पारदर्शी, ज्ञान में सक्ष्मदर्शी, मम जीवनोपकारी, मातृवत्सला, प.पू. गुरुवर्या द्वय श्रीसुलोचनाश्रीजी म.सा. एवं प.पू. श्रीसुलक्षणाश्रीजी म.सा. ने ही मुझे शोधकार्य के लिए प्रेरित किया। वास्तविक रूप से कहा जाय, तो इस अध्ययन एवं शोधकार्य के क्षेत्र में गति प्रदान करने का सम्पूर्ण श्रेय पूज्याश्री को ही जाता है। आपश्री ही मेरे जीवन की विकास यात्रा की मार्गदर्शक हैं। आपका मंगलमय वरदहस्त मेरी अमूल्य थाती है।
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