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परमोदारिक शरीरमनुष्य और तिर्यंचोंका शरीर औदारिक शरीर कहलाता है । श्रेष्ठताको प्राप्त औदारिक शरीर परमौदारिक शरीर कहलाता है । एक परमोदारिक शरीर तेरहवें, चौदहवें गुणस्थानवर्ती अरहन्त भगवान्का होता है, वह सप्त धातुओंके विकारसे रहित होता है । उसमें बादर निगोद जीव नहीं
रहते । परिनिष्क्रमणगर्भान्वय क्रिया
परम निर्वाण
कन्वय क्रिया
पल्य
पात्रत्व-
असंख्यात वर्षका एक पल्य होता है ।
दश अधिकारोंमें एक अधिकार
पारिव्रज्य -
aar क्रिया
पुण्ययज्ञ
दीक्षान्वय क्रिया
पुरावृत्त
दश शुद्धियोंमें एक शुद्धि पुरुषार्थ चतुष्टय—
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ।
पूजाराध्य -
दीक्षान्वय क्रिया
पूर्व
पृथक्त्व
१०.(४२).३६३
१०. (४२). ३६३
प्रत्यय
पुरुदेवचम्पूप्रबन्धे
६. (२).२२२ प्रवीचार
१. (९८).४४
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चौरासी लाखमें चौरासी लाखका गुणा करने पर जो लब्ध हो उतने वर्षोंका एक पूर्वांग होता है, और चौरासी लाख पूर्वांगोंका एक पूर्व होता है ।
१०. (४२).३६३
१०. (४२).३६३
१०. (४२).३६३
१०.(४२).३६४
८.(४१).२९७
१०. (४३).३६३
६. (२).२२३
तीनसे लेकर नौसे नीचेकी संख्या पृथक्त्व कहलाती है ।
सम्यग्दर्शनकी एक पर्याय
१.(९८).४४
३.३२.११७
मैथुन
प्रजासम्बन्धान्तर स्वरूप
दश अधिकारोंमें एक अधिकार
प्रबोध
प्रशम
होनेपर
सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन जीवादि सात तत्त्वोंका जो यथार्थ ज्ञान होता है वह सम्यग्ज्ञान कहलाता है ।
गर्भान्वय क्रिया
सम्यग्दर्शनका एक गुण, कषायके असंख्यात लोकप्रमाण अवान्तर स्थानोंमें मनका स्वभावसे शिथिल हो जाना । प्रशान्ति
प्रियोद्भव -
गर्भावय क्रिया
प्रीति—
गर्भान्वय क्रिया
बन्ध
[ ब ]
आत्मा आदि कर्म प्रदेशोंके एक क्षेत्र वगाहको बन्ध कहते । इसके प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश ये चार भेद I
बहिर्यान
गर्भान्वय क्रिया
मवनामर
१०. (४२). ३६३
भव्य
[भ]
३.५०.१३०
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एक प्रकारके देव, जो भवनवासी नामसे प्रसिद्ध हैं । इनके असुरकुमार आदि दश भेद होते हैं ।
३.३०.११६
१०. (४२). ३६३
१०. (४२). ३६३
१०. (४२). ३६३
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को प्राप्त करने की योग्यता रखने वाले जीव ।
३.३२.११७
१०.(४२).३६३
१.४.३
४.४७.१७०
१.३.३
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