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________________ परिशिष्टानि भाजनाङ्ग ३.(४५).११३ क्रम से नरकादि आयु के बन्ध का एक प्रकारके कल्प वृक्ष जिनसे कारण है। तरह-तरहके बर्तन प्राप्त होते हैं। मोक्षमार्ग ३ (८७).१२७ भूषणा ३.(४५).११३ 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षएक प्रकारका कल्पवृक्ष जिससे मार्गः' सम्यग्दर्शन. सम्यग्ज्ञान और मनचाहे आभूषण प्राप्त होते हैं । सम्यक्चारित्रकी एकता मोक्षका मोजनाङ्ग ३.(४५).११३ मार्ग है। एक प्रकारके कल्पवृक्ष जिनसे तरह मोद १०.४२.३६३ तरहके भोजन प्राप्त होते हैं । गन्विय क्रिया मोह[म J १.४.४ आठ कर्मो में प्रधान कर्म मध्यमपात्र८.१९.२९२ मौनाध्ययन वृत्ति १०.(४२).३६३ श्रावक गर्भान्वय क्रिया मन्त्र१०.(४२).३६४ [य] दश शुद्धियोंमें एक शुद्धि मन्दराभिषेक१०.(४२).३६३ योगत्याग १०.(४२).३६३ गर्भान्वय क्रिया गर्भान्वय क्रिया मद्यान ३.(४५).११२ योगसन्मह १०.(४२).३६३ मद्याङ्ग जातिके कल्पवृक्ष, जिनसे गर्भान्वय क्रिया पौष्टिक पेय प्राप्त होता है। योग निर्वाण संप्राप्ति १०.(४२).३६३ गर्भान्वय क्रिया मानस्तम्मचतुष्टय- ८.(४१).२९८ योजनसमवसरण-तीर्थकरकी धर्मसभा ८.(४१).२९६ चार कोश का एक योजन होता है। की चारों दिशाओंमें स्थित रत्नमय यौवराज्यस्तम्भ। इन्हें देखनेसे मानियोंका १०.(४२).३६३ गर्भान्वय क्रिया मान नष्ट हो जाता है इसलिए ये मानस्तम्भ कहलाते हैं। [र] मानाहत्व १०.(४२).३६३ रस्नत्रयदश अधिकारों में एक अधिकार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकमाल्याज ३.(४५).११३ चारित्र । एक प्रकार का कल्पवृक्ष जिससे रत्नावली २.(५२) ७० विविध प्रकार की मालाएँ प्राप्त एक व्रत होती हैं। रुचि ३.(३२).११७ मुक्तावली २.५१.६९ सम्यग्दर्शन की पर्याय एक व्रत मेषशृङ्गसम अप्रत्याख्यान माया- ३.(३५).१०८ [ल] माया कषाय के चार भेद हैं, १. कक्षण ६.(२).२२२ वेणुमूल सम, २. मेषशृङ्गसप, ३. सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार शरीर गोमूत्रसम, ४. क्षुरप्रसम-खुरपी के में पाये जाने वाले शुभचिह्न। समान । यह चार प्रकार की माया जिनेन्द्र के शरीर में १००८ लक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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