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________________ परिशिष्टानि दशनमोह३.२९.११६ पति १०.(४२).३६३ मोहनीयकर्मका एक भेद, इसके गर्भान्वय क्रिया उदयसे मिथ्यादर्शन होता है। इसके ध्यानचतुष्टय १.६०.३० तीन भेद है-१. मिथ्यात्व, २. रौद्रध्यान, आर्तध्यान, धर्म्यध्यान, सम्यग्मिथ्यात्व और ३. सम्यक्त्व और शुक्ल ध्यान । प्रकृति । दश सागरोपम३.(२१).१०४ [न] असंख्यात वर्षाका एक सागर होता नक्केवललब्धि-- है, ऐसे दश सागर प्रमाण । ८.(५२).३०५ केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिकदिकन्यका ३.२७.१५९ सम्यक्त्व, क्षायिकचारित्र, क्षायिकरुचकगिरि पर रहनेवाली ५६ दान, लाभ, भोग, उपभोग और देवियाँ। वीर्य ये नव केवललब्धियाँ कहदिग्विजय १०.(४२).३६३ लाती हैं। गर्भान्वय क्रिया नवनिधि ८.(५२):३०४ दिव्य देह ३.५०.१३० काल, महाकाल, नैःसर्प, पाण्डुक, वैक्रियिक शरीर पद्म, पिंगल, माणक, शंख, सर्वदीक्षाघ १०.(४२).३६३ रत्न ये नौ निधियाँ हैं। गर्मान्वय क्रिया नवपदार्थ ८.(५२).३०५ दीपान ३.(४५).११३ जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, एक प्रकारके कल्पवृक्ष, जिनसे संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष ये विविध प्रकारके दीपक प्राप्त नौ पदार्थ हैं। होते हैं। नामकर्म १०.(४२).३६३ गर्भान्क्य क्रिया दृढचर्या१०.(४२).३६४ निषद्या १०.(४२).३६३ दीक्षान्वय क्रिया गर्भान्वय क्रिया देवता १०.(४२).३६४ नि:संगत्वात्मभावना- १०.(४२).३६३ दश शुद्धियोंमें एक शुद्धि गर्भान्वय क्रिया द्वादशकोष्ठक ८.३४.३०७ समवसरणकी १२ सभाएँ [प] पक्षशुद्धि[ध] १०.(४२).३६४ तीन शुद्धियोंमें एक शुद्धि धर्म्यध्यान८.(३५).२९३ पञ्चाश्चय ३.१८.१०३ इसके चार भेद हैं-१. आज्ञा १. रत्नवृष्टि, २. पुष्पवृष्टि, ३. विचय, २. अपायविचय, ३. विपाक मन्दवायु, ४. दुन्दुभिनाद, ५. जयविचय, ४. संस्थानविचय। यह ध्यान घोष अथवा अहोदानं अहोदानं की चतुर्थ से लेकर सप्तम गुणस्थान तक ध्वनि। होता है। वीरसेन स्वामीके मतसे परमाहन्थ्य १०.(४२).३६३ दशम गुणस्थान तक। कन्वय क्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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