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________________ ३९० पुरुदेवचम्पूप्रबन्धे गणोपग्रहण १०.(४२).३६३ जिनाधिपतिगर्भान्वय क्रिया जिनेन्द्र देव गुरुपञ्चक २.६.५१ जिनेन्द्रगुणसंपत्तिअर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, एक उपवास व्रत और साधु ये पाँच परमेष्ठी । जीवादि पर्यन्त ३.३१.११७ गुरुपूजोपलम्मन १०.(४२).३६३ जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, गर्भान्वय क्रिया निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व गुरुस्थानाभ्युपगम १०.(४२).३६३ है, इनके यथार्थ श्रद्धानको सम्यगगर्भान्वय क्रिया दर्शन कहा गया है। गृहत्याग १०.(४२).३६३ ज्योतिरङ्ग ३.(४५).११३ गर्भान्वय क्रिया एक प्रकारका कल्पवृक्ष जिससे स्वयं गृहांग ३.(४५).११३ प्रकाश प्रकट होता है। एक प्रकारके कल्पवृक्ष जिनसे इच्छा ज्योतिष्क ४.४९.१७० नुकूल गृह प्राप्त होते हैं। एक प्रकार के देव, इनके सूर्य, गृहीशिव १०.(४२).३६३ चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक गर्भान्वय क्रिया तारे ये पाँच भेद हैं। [च] चक्रलाम१०.(४२).३६३ १०.(४२).३६२ गर्भान्वय क्रिया श्रावकका एक धर्म चक्राभिषेक१०.(४२).३६३ तीर्थकरत्वभावना १०.(४२).३६३ गर्भान्वय क्रिया गर्भान्वय क्रिया चारित्र३.३०.११६ निबोध किरण ४.३९.१६५ सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानके होने मति, श्रुत, अवधिज्ञानरूपी किरण पर हिंसादि पाँच पापोंसे विरत त्रिमूढ़ता ३.३१.११७ होना चारित्र कहलाता है। १ लोकमूढ़ता, २ देवमूढ़ता, ३ चर्याशुद्धि १०.(४२).३६४ गुरुमढ़ता। ___ तीन शुद्धियोंमें एक शुद्धि ज्यानि प्रमित ३.५०.१३० चारणार्द्धि २.५४.७१ तीन हाथ प्रमाण जिस ऋद्धिके प्रभावसे आकाशमें गमन होता है [द] [ज] दण्ड ८.(४१).२९६ जघन्य पात्र ८.१८.२९२ धनुष, चार हाथका एक दण्ड या अविरत सम्यग्दृष्टि धनुष होता है। जिनगुणसंपत्ति२.५४.७१ दत्ति १०.(४२).३६३ एक व्रत श्रावकका एक कर्म, दान जिनरूपता१०.(४२).३६३ दर्शन २.३३.७५ गर्भान्वय क्रिया सम्यग्दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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