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________________ परिशिष्टानि ३८९ [क] अस्थिसम अप्रत्याख्यान मान- ३.(३४).१०८ [उ] मानकषाय के चार भेद हैं-१.शैल उत्तम पात्र ८.१९.२९२ सम, २. अस्थि-हड्डी समान, ३. मुनि 'काष्ठं समान और, ४. वेत्रसम, यह उपनयन १०.(४२).३६३ चार प्रकार का मान क्रम से नर गर्भान्वय क्रिया कादि आयु के बन्ध का कारण है । उपयोगिरव १०.(४२).३६३ आतोद्याङ्ग ३.(४५).११३ दीक्षान्वय क्रिया एक प्रकारका कल्प वृक्ष, जिससे नाना प्रकारके वादित्र प्राप्त होते कनकावली-एकव्रत २.५३.७० भाधान-- १०:(४२).३६३ कल्पामर १०.५०.१७० गन्विय क्रिया वैमानिक देव, ये सोलह स्वर्ग, नौ भाराधना १.८३.३८ अवेयक, नौ अनुदिशों और पाँच अनुसमाधिमरण, सल्लेखना-इसके ३ तर विमानों में रहते हैं। सोलहवें भेद है-१. भक्त प्रत्याख्यान, २. स्वर्ग तक के कल्प और उसके आगे इंगिनीमरण और ३. प्रायोपगमन । के विमान कल्पातीत कहलाते हैं। भाहन्त्य श्री१०.(४२).३६३ कान्तारचर्या ३.९.१०२ गर्भान्वय क्रिया वन में आहार मिलेगा तो लेवेंगे आस्तिक्य ३.३२.११७ . अन्यथा नहीं, ऐसी प्रतिज्ञा । सम्यग्दर्शनका एक गुण, आप्त, व्रत, काम १०.(४२).३६४ श्रुत, परलोक आदिमें श्रद्धाका दश शुद्धियों में एक शुद्धि भाव । कुलचर्या १०.(४२).३६३ गर्भान्वय क्रिया आस्थानभूमि १०.(४६).३६४ केवल ज्ञान १.२.२ समवसरण-भगवान्की धर्म सभा लोक-अलोक को जाननेवाला पूर्ण भाष्याहिक महोत्सव १.(८२).३७ ज्ञान यह महोत्सव कार्तिक, फाल्गुन, और केशवाप १०.(४२).३६३ आषाढ़ मासके अन्तिम आठ दिनों गर्भान्वय क्रिया में होता है। इस महोत्सवमें देव कैवल्य २.४६.६७ लोग नंदीश्वर द्वीप जाकर वहाँके केवल ज्ञान कल्याणक अकृत्रिम जिनालयोंकी पूजा करते क्रिया १०.(४२).३६४ दश शुद्धियों में एक शुद्धि [ग] इज्या१०.(४२).३६३ गन्धकुटी १०.(४६).३६४ श्रावकका एक कर्म समवशरण का मध्य भाग जहाँ इन्द्रत्याग १०.(४२).३६३ भगवान् जिनेन्द्र विराजमान रहते गर्भान्वय क्रिया इन्द्रोपपाद१०.(४२).३६३ गणग्रह १०.(४२).३६३ गर्भान्वय क्रिया दीक्षान्वय क्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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