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________________ ७ ७-८४ २८ पुरुदेवचम्पूप्रबन्ध तुम्हारा सम्बन्ध होगा अतः शोक छोड़ो। यह कहकर वे राजा वज्रबाहु, बहन वसुन्धरा और उनके पुत्र वज्रजंघका स्वागत करनेके लिए चल पड़े। ४३-६८ इसी बीचमें पण्डिता धायने महापत जिनालयसे लौटकर ललितांग देवका परिचय प्राप्त होनेका सुखद समाचार सुनाया। इसी सन्दर्भमें उसने वज्रजंघकी सुन्दरताका वर्णन किया। ६९-८८ चक्रवर्ती वज्रदन्तने राजा वज्रबाह आदिका स्वागत किया । अनन्तर श्रीमती और वज्रजंघके विवाहकी तैयारियाँ हुईं। माताओंने अपने पुत्र-पुत्रियोंको वस्त्राभूषणोंसे सुसज्जित किया। राजा वज्रदन्तने जलधारा पूर्वक वज्रजंघके लिए श्रीमतीका पाणिग्रहण कराया। ८९-१०४ दूसरे दिन वज्रजंघने श्रीमतीके साथ जिनमन्दिर जाकर जिनेन्द्र भगवान्का स्तवन किया। बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजाओंने वज्रजंघ और श्रीमतीका सम्मान किया। वनजंघ और श्रीमती परस्परके मिलापसे अत्यन्त प्रसन्न हुए। १०५-११६ वज्रबाहुने अपनी अनुन्दरी नामक कन्या वज्रदन्तके पुत्र अमिततेजके लिए प्रदान की। ११७-११८ ८५-९१ ९१-९५ तृतीय स्तबक कुछ समय तक ससुरालमें रहनेके बाद वज्रजंघ श्रीमतीके साथ अपने नगरमें वापस आये। वहाँ सुखोपभोगमें उनका समय व्यतीत होने लगा । कालक्रमसे श्रीमतीने.पचास यगल पत्र उत्पन्न किये । इसी बीच वज्रजंघके पिता वज्रबाहु संसारसे विरक्त हो मुनि हो गये और केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष चले गये। वज्रजंघ पैतृक सम्पत्तिको प्राप्त कर प्रजाका पालन करने लगे। १-८ ९७-९९ इधर श्रीमतीके पिता वज्रदन्त चक्रवर्ती भी संसारसे विरक्त हो मुनि हो गये। उनके पुत्रोंने भी उन्हींके साथ दीक्षा ले ली। राज्यका भार बालक पुण्डरीकपर आ पड़ा। श्रीमतीकी माताने वज्रजंघके पास समाचार भेजा जिससे वे श्रीमतीके साथ वहाँ गये । उनके साथ एक बड़ी सेना भी गयी थी। वज्रजंघ और श्रीमतीने मार्गमें एक तालाब के किनारे मुनिराजको आहार दान दिया। वे मुनि श्रीमतीके ही पुत्र थे । दमधर सेन उनका नाम था। उनके मुखसे वज्रजंघने धर्मका उपदेश सुना तथा अपने और श्रीमतीके पूर्वभव पूछे । तदनन्तर यतिवर, धनमित्र, अकम्पन आदिके भी पूर्वभव पूछे । मुनिराजने उन सबके भवान्तर बताये। पश्चात् वज्रजंघने नकुल, शार्दूल, गोलांगूल और सूकरके विषयमें प्रश्न किया कि ये जीव निर्भय होकर यहाँ क्यों बैठे हैं ? मुनिराजने उन सबके भवान्तर भी ९-१९ ९९-१०३ ९९-१०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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