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________________ भारतीय संस्कृति में ध्यान परम्परा स्थिरतापूर्वक काया, सिर और ग्रीवा को सीधे अचल धारण करके अन्य दिशाओं को देखते हुए अपनी नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि रखे 181 न योगवाशिष्ठ में ध्यानयोग महर्षि वशिष्ठ ने भगवान श्रीराम को योग का जो उपदेश किया था वह सभी योगशास्त्रों में अद्वितीय है, उसका संग्रह महर्षि वाल्मीकि ने 'महारामायण' नाम से किया और वही योगवाशिष्ठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह भारतीय दर्शनशास्त्र और अध्यात्मविद्या का सर्वोत्तम उच्च कोटि का ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में आद्योपान्त योग ज्ञान के सभी अंगों का विस्तार से वर्णन हुआ है, किन्तु उपशम प्रकरण के छत्तीसवें सर्ग ध्यान का वर्णन किया गया है। वहाँ ध्यान के पर्याय रूप में समाधि का प्रतिपादन हुआ है। बुद्धि, अहंकार, चित्त, कर्म, कल्पना, स्मृति, वासना, इन्द्रियाँ, देह पदार्थ आदि को मन के रूप में ही माना गया है। 82 - समाधि का लक्षण बताया है. जो गुणों का समूह है, गुणात्मक तत्त्व है वह समाधि है एवं जो पर पदार्थों को अनात्मरूप देखते हुए अपने आपको केवल इनका साक्षीभूत चेतन जानता है और जिसका चित्त स्वभावसत्ता में लगकर शीतल हो गया है वह समाधिस्थ कहलाता है8 3 योगवाशिष्ठ में योग शब्द का अर्थ है . संसार सागर से पार होने की युक्ति 84 । योग के तीन प्रभेद किये गये हैं -85 - 1. एक तत्त्व की दृढ़ भावना 2. प्राणों का निरोध और 3. मन की शान्ति - मनोनिरोध | एक तत्त्व की दृढ़ भावना से मन शान्त होकर आत्मा में विलीन हो जाता 81. वही, 6, 10-13 82. योगवाशिष्ठ 6.1.14-17, 6.7.11, 6.139.1, 3.110.46 83. वही, उपशम प्रकरण अध्याय - 36/10 84. वही, निर्वा. पू. 13.3 85. योगमनोविज्ञान पृ. 12 Jain Education International एक तत्त्व घनाभ्यास । खण्ड: प्रथम P 38 For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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