________________
खण्ड : प्रथम
है और प्राणों का स्पन्दन स्वयं ही रुक जाता है। 86 एक तत्त्व का दृढ़ अभ्यास तीन प्रकार से किया जाता है ब्रह्मभावना, अभाव भावना और केवली भावना 187
प्राणनिरोध
जैसे पंखे का हिलना बंद होते ही हवा का चलना बन्द हो जाता है उसी प्रकार प्राणों की गति रुक जाने पर मन भी शान्त हो जाता है। प्राणों का स्पन्दन रुकने से मन शान्त हो जाता है और मन के शान्त हो जाने पर संसार का लय हो जाता है। 88
जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम
प्राण क्या है ? प्राणों की प्रगति किस प्रकार होती है ? और प्राणायाम कैसे किया जाता है, इन विषयों की चर्चा योगवशिष्ठ में विस्तार से हुई है।
मन की शान्ति
मन के निरोध द्वारा साधक अपनी इच्छाओं का पूरी तरह से शमन कर लेता है। 89 मन को शान्त करने के उपाय - बिना उचित युक्ति के मन को जीतना कठिन है । मन को शान्त करने की अनेक युक्तियाँ हैं -
-
ज्ञानयुक्ति, संकल्पयुक्ति, भोगों से विरक्ति, वासनात्याग, अहंभाव का नाश, कर्तृत्व भाव का त्याग, सर्वत्याग, समाधि का अभ्यास, लयक्रिया आदि । बौद्ध धर्म में ध्यान की परम्परा एवं ध्यान विषयक साहित्य
बौद्ध धर्म में निर्वाण- प्राप्ति के लिए दो साधनों से सम्पन्न होने का विशेष रूप से निर्देश किया है। उनमें पहला साधन शीलविशुद्धि और दूसरा चित्तविशुद्धि है । शीलविशुद्धि का अर्थ सत्कर्मों के अनुष्ठान से आचार और व्यवहार विषयक शुद्धि प्राप्त करना है । शीलविशुद्धि की प्रक्रिया का विवेचन हमें अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होता है | किन्तु चित्तविशुद्धि का संदेश आचार्यों के द्वारा मौखिक रूप में दिया जाता
86. योगवासिष्ठ निर्वा. पृ. 68.48
87. वही, स्थिति 4.53
88. योगवासिष्ठ 5.78. 15-6
89. वही, 5.8
90. वही, उप पृ. 91-34
Jain Education International
39
For Private & Personal Use Only
PPP
www.jainelibrary.org