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________________ भारतीय संस्कृति में ध्यान परम्परा खण्ड: प्रथम गीता के सभी अध्यायों में योग की चर्चा हुई है किन्तु छठे अध्याय में विशेष रूप से योग और योगी के स्वरूप पर चिन्तन हुआ है। गीता में स्थितप्रज्ञ के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए कहा गया है कि हे पार्थ ! मनुष्य जब मनोगत सब इच्छाओं को त्यागकर अपने आप अपने में ही सन्तुष्ट होता है तब उसे स्थितप्रज्ञ कहा जाता है। स्थित-प्रज्ञ मुनि दु:खों में उद्विग्न न होकर सुख की ओर नि:स्पृहता रखता हुआ राग, भय और क्रोध से रहित होता है। आगे वहाँ और भी कहा गया है कि विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और काम से क्रोध, क्रोध से मूढ़ भाव, मूढ़ भाव से स्मृति विभ्रम, स्मृति विभ्रम से बुद्धि अर्थात् ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धिनाश से वह स्वयं नष्ट हो जाता है। छठे अध्याय में योग के स्वरूप का वर्णन करते हुए पहले से नवें श्लोक तक कर्मयोग का वर्णन हुआ है। वहाँ बताया है कि जो समता कर्मयोग से प्राप्त होती है, वही समता ध्यानयोग से भी प्राप्त होती है। ध्यानयोग की प्रेरणा देते हुए कहा गया है कि मन और इन्द्रियों को नियन्त्रित करके आशा और परिग्रह से रहित होते हुए एकान्त स्थान में अकेले स्थित होकर आत्मचिन्तन करना चाहिए। यथायोग्य आहार-विहार और कर्मों में उचित प्रवृत्ति करने वाले और यथायोग्य शयन तथा जागृत रहने वाले व्यक्ति के दु:खों का नाश करने वाला योग होता है। जिस समय स्वाधीन हुआ चित्त आत्मा में ही अवस्थित होता है तब समस्त कामनाओ की ओर से नि:स्पृह हो जाने पर उस योगी को योग से युक्त कहा जाता है।6 __ ध्यानयोगी अपने द्वारा अपने आप में सुख का अनुभव करता है और इस सुख में स्थित हुआ वह कभी किञ्चित् मात्र भी विचलित नहीं होता है। जिस सुख को पाकर उससे अधिक दूसरा कुछ भी लाभ नहीं मानता और परमात्म प्राप्ति रूप जिस अवस्था में स्थित योगी बड़े भारी दुःख से भी चलायमान नहीं होता7 उसका 74. गीता, 2, 55-56 75. वही, 2.62, 63 76. वही, 6. 17-20 77. वही, 6.21-22 ~~~~~~~~~~~~~~~ 36 ~~~~~~~~~~~~~~~ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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