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________________ खण्ड : प्रथम जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम हठयोग के प्रमुख ग्रन्थ हैं। __ हठयोग में इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, हस्तजिह्वा, पूषा, यशस्विनी, अलम्बुषा, कुहु तथा शंखिनी आदि का उल्लेख है। . चौरासी आसन सिद्धि प्राप्त करने में विशेष सहायक माने गये हैं। उनमें भी सिद्धासन, पद्मासन, भद्रासन, वज्रासन, स्वस्तिकासन, सिंहासन, गोमुखासन, वीरासन, मत्स्यासन, मयूरासन, कुक्कुटासन, गरुड़ासन आदि प्रमुख हैं।। हठयोग में नाड़ीशुद्धि के लिए प्राणायाम का महत्त्व भी स्वीकार किया गया है। जैन परम्परा में हठयोग को विशेष महत्त्व नहीं दिया गया है। इसका कारण यह है कि हठयोग के द्वारा किया गया नियन्त्रण न तो स्थायी लाभ देता है और न ही इससे आत्मशुद्धि होती है। मुक्ति की प्राप्ति में भी इसका महत्त्व स्वीकार नहीं किया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में ध्यानयोग भारतीय वाङ्मय में श्रीमद्भगवद्गीता का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। 'गीता' महाभारत युद्ध के मैदान में उपदिष्ट योगविषयक ग्रन्थ है। युद्ध के प्रांगण में श्रीकृष्ण अर्जुन को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि "तस्माद् योगी भवार्जुन" अर्थात् हे अर्जुन ! तुम योगी बनो। जब अपने युद्धोन्मुख सुहज्जनों को देखकर अर्जुन का हृदय व्यथित हो उठता है तब श्रीकृष्ण ने दयार्द्र हृदय व अश्रुपूर्ण नेत्रों से युक्त विषण्णवदन अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हुए जो आध्यात्मिक उपदेश दिया, वह गीता का प्रमुख अभिध्येय रहा है। श्रीकृष्ण अर्जुन को योगी बनाना चाहते हैं अत: वे अर्जुन से कहते हैं - "तस्माद योगी भवार्जुन। अर्थात् तुम योगी बनो।72 गीता में योग का विभिन्न पक्षों में उल्लेख हआ है। उसमें योग का स्वर कभी कर्म के साथ, कभी भक्ति के साथ और कभी ज्ञान के साथ सुनाई देता है।73 70. गोरक्ष संहिता 26-27 71. घेरण्ड संहिता 3. 3-6 72. श्रीमद् भगवद्गीता 6.46 73. गीता रहस्य (पं. बालगंगाधरतिलक) भाग दो की शब्द सूची। ~~~~~~~~~~~~~~~ 35 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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