SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय संस्कृति में ध्यान परम्परा खण्ड : प्रथम 'धूत' शब्द के सम्बन्ध में मुनि राकेश जी की मान्यता है कि सम्भवत: प्रयत्नलाघव की प्रक्रिया के अनुसार अवधूत शब्द के संक्षिप्तीकरण में केवल 'धूत शब्द ही अवशेष रह गया हो।18 पतंजलि के ‘योगसूत्र' में योगियों का वर्णन है। चित्तवृत्तियों के निरोध हेतु प्रयत्नशीलता, जो आत्मा को अन्ततः अपने स्वरूप में अवस्थित कराती है, एक योगाभ्यासी की साधना-यात्रा है। पतंजलि ने विदेहयोगी का उल्लेख भी किया है। उनके अनुसार विदेहयोगी उन्हें कहा जाता है जो वितर्कानुगत और विचारानुगत समाधि सिद्ध करके शरीर से असंग अर्थात् देहभाव से विमुक्त होते हैं। इस परम्परा में हठयोग का उल्लेख भी प्रासंगिक है। हठयोग के आदि आचार्य आदिनाथ या शिव माने जाते हैं। मन्थान, भैरव, सिद्ध, बुद्ध, कंथड़ी, कोरंटक, सुरानन्द, सिद्धपाद, चरपटी, निरंजन, कपाली आदि ने हठयोग की साधना से ही आत्मसिद्धि प्राप्त की। उपर्युक्त विवेचन से यह प्रकट होता है कि निस्सन्देह श्रमण संस्कृति भारतवर्ष की एक अत्यन्त गौरवशील संस्कृति रही है, जो प्रागैतिहासिक काल से ही भारत के विविध अंचलों में फलती-फूलती रही है। श्रमण संस्कृति की विचारधारा वैदिक संस्कृति की विचारधारा से भिन्न है। वैदिक संस्कृति प्रवृत्ति-प्रधान है जबकि श्रमण संस्कृति श्रम, शम एवं सम से आप्लावित निवृत्ति प्रधान है। वैदिक संस्कृति में यज्ञयाग आदि कर्म-काण्ड तथा पूजा-उपासना आदि का प्राधान्य है। श्रमण संस्कृति आध्यात्मिक अभ्युदय, परम कल्याण तथा शान्ति आदि हेतु संयम, व्रत एवं तपश्चरण पर आधारित है। जैन परम्परा बौद्ध परम्परा से मिलतीजुलती एक सर्वथा स्वतंत्र पृथक् परम्परा है। त्रिपिटक-साहित्य का परिशीलन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि तथागत बुद्ध ने अनेक स्थलों पर श्रमण भगवान महावीर को 'निग्गंथ नाथपुत्त' आदि नाम से सम्बोधित किया है। 18. जैन योग की परम्परा पृ. 4 19. हठयोग प्रदीपिका 6-9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy