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यशोविजय और आनन्दघन के साहित्य में ध्यानसाधना
खण्ड : अष्टम
चौबीसी' भक्ति, आत्मसमर्पण, साधना और योग के उन अनुभूत उच्चभावों से संपृक्त है, जिनके अनुभवन-अनुसरण से जीवन में मुमुक्षु साधकों के मन में निश्चय ही एक दिव्य आनन्द की अनुभूति होती है। उनका जीवन पवित्रतम, उच्चतम साधनाओं का एक उत्कृष्टतम संगमस्थल जैसा था। वे जैन परम्परा के एक संयमी साधक थे। अत: आर्हत् चिन्तनधारा तो उनमें व्याप्त थी ही, साथ-ही-साथ उन्होंने अन्यान्य परम्पराओं में व्याप्त अध्यात्म योग विषयक तत्त्वबिन्दुओं को भी गृहीत करते हुए उन्हें आर्हती साधना के निर्मल रूप में परिणत कर दिया।
ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया जाय तो आनन्दघन जी के संबंध में कोई प्रामाणिक सामग्री प्राप्त नहीं होती। विभिन्न विद्वानों के उनके जीवन, जन्मस्थान आदि के विषय में विभिन्न मत हैं। कुछ उनको मारवाड़, कुछ गुजरात, कुछ सौराष्ट्र तो कुछ उत्तरप्रदेश से भी जोड़ते हैं। जैन साहित्य के विख्यात मनीषी और अनुसंधाता श्री अगरचंद नाहटा ने 'आनन्दघन ग्रंथावली' में इन महापुरुष की जन्मस्थली, कर्मस्थली
और साधना स्थली का उल्लेख किया है जो वर्तमान युग के सुप्रसिद्ध जैनयोगी सहजानन्द के मत पर आधारित है। उन्होंने उनका जन्म मेड़ता में होना बताया है, वे वहीं के एक श्रावक के पुत्र थे। उन्होंने ऐसा भी सूचित किया है कि उनकी साधनास्थली और कर्मस्थली मुख्य रूप से मेड़ता ही रही। वे अधिकांश समय तक मेड़ता के ही आस-पास के स्थानों में विचरण करते रहे। इनकी भाषा गुजराती मिश्रित राजस्थानी है। अत: कुछ विद्वान् इनके गुजरात में जन्म लेने और उसी क्षेत्र में अधिक विचरण करने पर अधिक बल देते हैं। किन्तु यहाँ यह ज्ञातव्य है कि गुजरात और राजस्थान में भाषा, संस्कृति, धर्म इत्यादि की दृष्टि से परस्पर बड़ा तादात्म्य रहा है। अब से लगभग 5 शताब्दी के पूर्व जो भाषा प्राप्त होती है, उसे गुजरातियों द्वारा जूनी गुजराती और राजस्थानियों द्वारा पुरानी मारवाड़ी कहा जाता है। अत: एक ही भाषा प्रचलित रही है जो लगभग गुजरात और पश्चिमी राजस्थान में समान रूप से बोली, समझी जाती रही है। इतिहासज्ञों ने इसे मरुगुर्जर के नाम से अभिहित किया है। अवश्य ही योगिराज आनन्दघन गुजरात में भी विचरणशील रहे हैं, इसमें कोई संशय नहीं। गुजरात और राजस्थान दोनों ही इनके कार्यक्षेत्र रहे हैं। संभव है, मेड़ता की पावन धरा में विशेष प्रवास और विचरण रहा हो।
आनन्दघन जी के वर्णन में एक चामत्कारिक बात यह परिलक्षित होती है कि ~~~~~~~~~~~~~~ 16 ~~~~~~~~~~~~~~~
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