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________________ आचार्य हेमचन्द्र, योगप्रदीपकार व सकलचन्द्रगणि के साहित्य में ध्यानसम्बन्धी निर्देश खण्ड : सप्तम योग के आठों अंगों का उल्लेख करने से यह प्रतीत होता है कि ग्रन्थकार की दृष्टि व्यापक एवं समन्वयात्मक रही है। अन्त में, उन्होंने इन अंगों का सम्पूर्ण विधिपूर्वक अभ्यास करने का जो उल्लेख किया है उसका आशय यह है कि आध्यात्मिक साधक इन योगांगों का अपने आत्मोन्नयन की दृष्टि से उपयोग करे, वैसा करने से ये उसके परमात्मभावोन्मुख साधनाक्रम में सहयोगी सिद्ध हो सकते हैं। उन्होंने पूर्ववर्णित विषयों को और अधिक वैशद्य देने हेतु कहा है, वही धर्म, व्रत, ध्यान, तप, योग है, वही साधनाभ्यास है जहाँ मन में संक्लेश पैदा न हो। योगी संकल्प-विकल्पविहीन, बाह्य कारणों से रहित, धारणा और ध्येय से युक्त निर्मल स्थान समायुक्त, ध्रुव-शाश्वत परमात्म पद पर अपने चित्त को भावपूर्वक नियोजित करे। यों करने वाला फिर पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता।124 ध्यानसाधना में उन्मनी भाव का बड़ा महत्त्व है। अतएव रचनाकार ने इसका विशेष रूप से वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है-मानसिक व्यापार से विमुक्त, सदैव साधना के अभ्यास में तल्लीन उन्मनी भाव को प्राप्त साधक परमपद को प्राप्त करता है। साधक जब विषयासक्ति रहित हो जाता है, मन का निरोध कर लेता है तब वह उन्मनी भाव को प्राप्त करता है जो परम पद की प्राप्ति का हेतु है। अध्यात्म रस में लीन होना योग की भाषा में समरसी भाव है। उसका वर्णन करते हुए ग्रन्थकार ने कहा है जहाँ ध्याता और ध्यान दोनों का अभाव हो जाता है, दोनों ध्येय में ऐक्य प्राप्त कर लेते हैं उसे उन्मनी भाव कहा गया है, वहाँ मन का एकीकरण सिद्ध हो जाता है।125 __उन्मनी भावयुक्त चित्त जहाँ और कुछ भी चिन्तन नहीं करता, वह निराकार महासूक्ष्म ध्यान कहा जाता है।126 ___ध्यान में साधक जागृत रहे इसलिए उन्होंने विशेष रूप से परिज्ञापित किया है कि आवरणतुल्य सांसारिक विषय-भोगों से जिनके ज्ञानरूपी नेत्र आच्छादित हैं वे 124. वही, 53-55 125. वही, 63-65 126. वही, 73 ~~~~~~~~~~~~~~~ 56 ~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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