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________________ आचार्य शुभचन्द्र,भास्करनन्दि व सोमदेव के साहित्य में ध्यानविमर्श खण्ड : षष्ठ ग्रन्थकार ने संक्षेप में यहाँ चारों ध्यानों का परिचय दिया है। जिस प्रकार चित्त की एकाग्रता के आधार पर शुभ या प्रशस्त एक प्रकार का ध्यान है, उसी प्रकार अशुभ या अप्रशस्त भी आलम्बन की एकाग्रता के आधार पर ध्यान तो होता ही है। इसलिए इसे भी ध्यान कहते हैं, किन्तु यह नहीं समझ लिया जाना चाहिए कि वह आदेय है। आर्त - रौद्र ध्यान अनादेय और त्याज्य हैं। उनका फल तिर्यंच योनि या नरक योनि के रूप में है। धर्म, शुक्ल ध्यान ही आत्मकल्याणकारी हैं जो क्रमश: स्वर्ग और मोक्ष प्रदाता हैं। ध्यानसिद्ध योगीश्वरों ने बतलाया है कि ध्यान पापों का नाश करने वाला । है। चंचल, किसी एक स्थान पर नहीं टिकने वाली बुद्धि को किसी एक अभीष्ट तत्त्व पर स्थिर करना, अन्य विषयों से उसे हटाकर ध्यान में लीन करना, द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक आदि अनेक नेत्रों के अनुसार दृढ़ होकर चिन्तन करना, संप्रश्न-अन्तर्जल्प, आन्तरिक ऊहापोह करना, अनुभावित होना अथवा शास्त्रों में वर्णित पंच परमेष्ठियों के वाचक पदों या शब्दों का आलोचन करना अथवा उनका अर्थ समझकर उनमें लीन हो जाना ध्यान है।126 आर्त एवं रौद्र ध्यान समस्त संस्थान युक्त देहधारियों में है। सभी शरीरों में, चारों गतियों में सभी संज्ञी एवं विकलेन्द्रिय प्राणियों में सम्भव है। वहाँ योगोपयोग होता है। उत्कृष्ट धर्म ध्यान संयमी साधकों में होता है। अनुत्कृष्ट जघन्य, मध्यम धर्मध्यान सम्यक्दृष्टि होने पर पशुओं, नारकों, नपुंसकों एवं स्त्रियों में संभावित है। इनके अतिरिक्त अविरत सम्यग्दृष्टि तथा अणुव्रती गृहस्थों में होता है। सर्वज्ञ प्रभु ने ऐसा निरूपित किया है।127 धर्मध्यान के वैशिष्ट्य की चर्चा करते हुए ग्रन्थकार ने लिखा है- परम मेधावी आचार्यों ने वस्तु समूह के यथार्थ स्वरूप को धर्म कहा है। तत्सम्बद्ध धर्मध्यान सदैव । हर्ष, अमर्ष, द्वेष, अभिरंग आसक्ति से जिनका मन शून्य है ऐसे मुमुक्षुओं को स्वरूप और पररूप के आलम्बन से स्वायत्त होता है। 126. वही, गा. 16 127. वही, मा. 18 ~~~~~~~ruraMMISRAM 66 ~-~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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