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________________ विषय के साथ जोड़ने से है । वह विषय सत् भी हो सकता है, असत् भी हो सकता है । असत् वह होता है, जो काम, क्रोध, ऐषणा, वासना, भोगेच्छा आदि के साथ जुड़ा हुआ हो । सत् वह होता है, जो जीव को उसके शुद्ध स्वरूप तथा स्वभाव की दिशा में ले जाता है। असत् की ओर ले जाने वाला ध्यान सावद्य - पापयुक्त है, त्याज्य है। शास्त्रों में उसका आर्त्तध्यान एवं रौद्र ध्यान के रूप में वर्णन हुआ है । ग्राह्य आत्मा को शुभ क्रमशः शुद्ध स्वरूप की दिशा में ले जाने वाला ध्यान धर्म ध्यान तथा शुक्ल ध्यान के रूप में व्याख्यात हुआ है । यही आदेय, 1 या स्वीकार्य है, क्योंकि इससे जीव अपने कर्म - कालुष्य अथवा पाप-मल का प्रक्षालन करता हुआ अपने शुद्ध स्वरूप को अधिगत करने की यात्रा में आग बढ़ता जाता है । अंतत: वह वीतरागता का मार्ग अपना लेता है और अध्यात्मयोग की परमावस्था अथवा परमात्मावस्था प्राप्त कर लेता है । योग का सामान्य अर्थ जुड़ना है । वहाँ आत्मा का अपने शुद्ध स्वरूप के साथ जुड़ाव होता जाता है, तब जीव बहिरात्मभाव से मुड़कर अंतरात्मभाव की ओर अग्रसर होता-होता परमात्मभाव को उद्दिष्ट कर चलता जाता है । वही शुद्ध ध्यान अध्यात्म योग का रूप ले लेता है । आत्मा का परम लक्ष्य निर्वाण या मोक्ष है । समग्र कर्मों का क्षय होने पर वह प्राप्त होता है। कर्मक्षय में ध्यान की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। जो साधना की ऊँचाइयों पर पहुँचे, उन आचार्यों, संतों तथा साधकों ने ध्यान साधना का उत्तरोत्तर विकास करने का प्रयत्न किया। उनका एक ही लक्ष्य था कि ध्यान द्वारा जीव अपने मालिन्य एवं कालुष्य का अपनयन करता हुआ आत्मोज्ज्वलता प्राप्त करे । जैन आगमों में निर्जरा आदि तत्त्वों के विवेचन के अन्तर्गत ध्यान का वर्णन आया है | आगमों के व्याख्याकारों ने जहाँ, जैसा अपेक्षित हुआ, उसका विश्लेषण किया है । एक समय था जब भारतवर्ष में सभी धर्मों में "योग" के नाम से साधना का विशेष उपक्रम प्रस्फुटित हुआ था । महर्षि पतंजलि द्वारा निरूपित अष्टांग योग में ध्यान का सातवां स्थान है। वह साधना की अन्तिम मंजिल समाधि पर आरोहण करने का अनन्य माध्यम है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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