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________________ खण्ड: षष्ठ जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम ध्यानानुरत संयमी साधक परमात्मस्वरूप में मन लगाकर उसके ही गुणसमूह में रंजित रहे। उनमें अपनी आत्मा को स्वरूपसिद्धि हेतु योजित करे, तन्मय बनाये। इस प्रकार आत्मस्मरण आत्मानुचिन्तन, आत्मानुभवन करता हुआ ध्यान योगी परमात्मस्वरूप का अवलम्बन कर तन्मयता प्राप्त कर लेता है। वह साधक अन्य सबकी शरण का परित्याग कर परमात्मा-स्वरूप को ही शरण रूप मानता है, उसमें तल्लीन हो जाता। वहाँ ध्याता और ध्यान दोनों के भेद का अस्तित्व नहीं रहता तथा देहस्वरूप से ऐक्य प्राप्त हो जाता है।85 सवीर्यध्यान, आत्मपराक्रम पूर्ण ध्यान का जो अभ्यास-प्रयोग करते हैं उनके चित्त रूपी सरोवर में उठती हुई राग-द्वेषात्मक तरंगें शिथिल हो जाती हैं, मिटती ही जाती हैं तथा प्रशान्त भाव का उद्गत होता है। आत्मानुभूति की ज्योति प्रकाशित होती है। अन्तरात्मा का स्वरूप कितना शान्त और श्रेयस् पूर्ण है, ऐसा अनुभूत होता है।86 ____ अन्त में, सार रूप में ग्रन्थकार ने प्रतिपादित किया है कि परमात्मस्वरूप के ज्ञान के बिना प्राणी संसार रूप इस भवार्णव में भ्रमण करता है। उसे अधिगत कर लेने से वह देवेन्द्र से भी अधिक महत्त्व प्राप्त कर लेता है। वही परमात्मा समस्त लोक के लिए आनन्द का निलय, आवास-स्थान है। वह परम ज्योति स्वरूप है, सबका त्राता, रक्षक या शरणप्रदायक है, परम पुरुष है, वह अनिर्वचनीय है। धर्मध्यान के भेदः आज्ञा विचय - 33वें सर्ग में धर्मध्यान के परम्परागत चार भेदों का उल्लेख कर जिनाज्ञा या उपदेश पर अवलम्बित आज्ञाविचय ध्यान का वर्णन किया गया है। ग्रन्थकार ने कहा है- प्रमाण, नय एवं निक्षेपों द्वारा निर्मित, स्थिति, उत्पत्ति व्यय संयुक्त चेतन-अचेतन स्वरूप तत्त्व का चिन्तन, उस पर एकाग्रता, आज्ञा-विचय ध्यान के अन्तर्गत है। सर्वज्ञ प्रभु के उपदेशरूप श्रुतज्ञान शब्द और अर्थ के प्रकाश से समायुक्त है। समग्र विद्याओं का आचार आदि अंग पूर्वक ज्ञानादि के रूप में जो द्रव्यश्रुत भावश्रुत है उस पर चिन्तन को एकाग्र भाव से इस ध्यान में टिकाया जाता है। SPERICA GRALA 85. वही, 31.35-37 86. सवीर्यध्यान पृ. 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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