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________________ खण्ड: षष्ठ जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम सैद्र ध्यान : 26वें सर्ग में ग्रन्थकार ने रौद्र ध्यान का वर्णन किया है। उन्होंने उसे परिभाषित करते हुए लिखा है, तत्त्वद्रष्टाओं ने उस प्राणी को रुद्र कहा है जिसका आशय, मनोभाव या अभिप्राय क्रूरता लिये होता है। वैसे क्रूर व्यक्ति के कर्म अथवा भाव या तन्मूलक चिन्तन, उसमें एकाग्रता को रौद्र ध्यान कहा जाता है।48 शाब्दिक व्युत्पत्ति की दृष्टि से रौद्रयति द्रावयति अन्यान् इति रुद्र:-जो औरों को रुला दे, शोक-विह्वल बना दे वह है। ऐसे क्रूरता, निर्दयता युक्त व्यक्ति का तद्विषयक एकाग्र चिन्तन रौद्र ध्यान में समाविष्ट है। आगे रौद्र ध्यान के हिंसानन्द, मृषानन्द, चौर्यानन्द और संरक्षणानन्द रूप चार भेदों की चर्चा की है। हिंसानन्द : हिंसानन्द भेद का प्रतिपादन करते हुए ग्रन्थकार ने लिखा है- प्राणियों के समूह को अपने द्वारा तथा औरों के द्वारा पीड़ित किये जाने पर, मारे जाने पर, जो व्यक्ति अपने मन में हर्ष का अनुभव करता जाय, वैसे दुश्चिन्तन में लगे वह हिंसानन्द नामक रौद्रध्यान है। जो व्यक्ति निरन्तर निष्करुण-कारुण्य रहित निर्दय भाव लिये रहता है, स्वभाव से ही जिसका क्रोध रूप कषाय उद्दीप्त या प्रज्वलित रहता है, जो मदोद्धत रहता है, जिसकी बुद्धि में पाप समाया रहता है, जो कुशील होता है, नास्तिक होता है एवं सद्धर्म में अनासक्त होता है, ऐसा व्यक्ति रौद्र ध्यान का धाम-घर कहा गया है। जीवों की हिंसा करने में कुशलता, प्रवीणता, पापपूर्ण कार्य में उपदेश करने में निपुणता, नास्तिक सिद्धांतों का निरूपण करने में दक्षता, प्राणियों के अतिपात-हनन करने में अनुरक्तता, निर्दयप्राणी के साथ सहवास तथा स्वभावत: क्रूरता जिन व्यक्तियों में होती है उनका ध्यान प्रशान्तचेता, पूज्यजनों ने रौद्र कहा है। यहाँ प्राणियों का किस उपाय से घात किया जा सके, घात करने में कौन प्रवीण है, घात करने में किसका अनुराग है, वह कितने दिनों में जीवों का घात कर 48. वही, 26.2 49. वही, 26.3 ~~~~~~~~~~~~~~~ 27 ~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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