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आचार्य शुभचन्द्र,भास्करनन्दि व सोमदेव के साहित्य में ध्यानविमर्श
खण्ड : षष्ठ
यदि तुम्हें यह अभीप्सा हो कि मुझे नरक में निपतित न होना पड़े, यदि तुम चाहते हो कि मुझे देवेन्द्र का महान् वैभव और समृद्धि प्राप्त हो, यदि तुम्हें चारों पुरुषार्थों में मोक्ष इच्छित हो तो अधिक क्या कहा जाये तुम एक मात्र धर्म का सेवन करो।23
आगे यथाक्रम लोकभावना का वर्णन कर अन्त में उन्होंने बोधिदुर्लभ भावना का विवेचन किया है। सम्यक् बोधि की दुर्लभता पर उन्होंने बड़े ही प्रसादपूर्ण मधुर शब्दों में लिखा है -
सुलभमिह समस्तं वस्तुजातं जगत्या - मुरगसुरनरैन्द्रैः प्रार्थितं चाधिपत्यम् ! कुलबलसुभगत्वोद्दामरामादि चान्यत्, किमुत तदिदमेकं दुर्लभं बोधिरत्नम् ॥13॥
इस संसार में समस्त पदार्थ समूह सुलभ हैं। धरणेन्द्र, नरेन्द्र एवं सुरेन्द्र द्वारा प्रार्थित-वांछित आधिपत्य भी सुलभ है, यहाँ पर भी प्राप्त हो सकते हैं। उत्तम कुल, बल, सौभाग्य, सुन्दर रानी आदि समस्त पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं, किन्तु सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र रूप सम्यक् बोधि अत्यन्त दुर्लभ है।24 आध्यात्मिक विकास, उन्नति, कल्याण और मुक्ति रूप परम लक्ष्य इत्यादि के रूप में जो भी जीवन प्राप्त है उन सब के मूल में बीज रूप में सम्यक् बोधि है। उसी के आधार पर ये निष्पन्न होने वाले सुन्दर सुपरिणाम-सुफल हैं।
'ज्ञानार्णव' निश्चय ही ज्ञान का महान् सागर है क्योंकि ध्यान की साधना से ज्ञान संस्फूर्त होता है। दृढ़ता एवं ऊर्ध्वगामिता प्राप्त करता है, यही कारण है कि ग्रंथकार ने इस ग्रन्थ के विविध सर्गों में विविध प्रसंगों पर विविध अपेक्षाओं से ध्यान का वर्णन किया है। बान का संक्षिप्त स्वरूप:
___ आचार्य शुभचन्द्र ने दुर्लभ मानव जीवन का उल्लेख करते हुए तृतीय सर्ग के प्रारम्भ में यह बताया है कि इस जीवन का फल पुरुषार्थ है। वह पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, 23. वही, धर्मभावना, 2-23 24. वही, बोधिदुर्लभभावना 2.13 ~~~~~~~~~~~~~~~ 18 mmmmmmmmmmmmmmm
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