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________________ आचार्य शुभचन्द्र, भास्करनन्दि व सोमदेव के साहित्य में ध्यानविमर्श PPP - खण्ड: - षप्ठ 1. ज्ञानार्णव 42.87 साहित्यदर्पण 6.315 2. शुभचन्द्र भास्करनन्दि व "साहित्य में ध्यानविमर्श आचार्य शुभचन्द्र : जैन परम्परा के सुप्रसिद्ध तत्त्वज्ञानी अध्यात्मयोगी महान् कवि आचार्य शुभचन्द्र रचित 'ज्ञानार्णव' जैनयोग वाङ्मय में प्रतिष्ठापन्न महनीय कृति है । ध्यान, आत्मा के ज्ञानगुण को समग्र रूप में प्रकट करने वाला है अतएव ध्यान और ज्ञान का कार्य-कारण भाव के रूप में अविच्छिन्न सम्बन्ध है । आचार्य ने अपने इस ध्यानप्रधान शास्त्र को ज्ञान विषय का ग्रन्थ मानकर इसे 'ज्ञानार्णव' नाम दिया है । विषय की अपेक्षा यह ध्यान का समुद्र ही है । इसमें ध्यान के सभी पक्षों का एवं उसके सहयोगी साधनों का विस्तृत वर्णन हुआ है। स्वयं आचार्य ने भी इसे 'ध्यानशास्त्र' 1 कहा है। Jain Education International आचार्य शुभचन्द्र जैनविद्या में परम निष्णात थे, बड़े ही तितिक्षापरायण साधक थे और अध्यात्मयोग के विवेचक थे। इसके अतिरिक्त वे जन्मजात विलक्षण प्रतिभा के धनी कवि भी थे। उन्होंने 'ज्ञानार्णव' में ध्यान साधना सम्बन्धी निगूढ़ विषयों का सरस काव्यात्मक शैली में जो विवेचन किया है वह वास्तव में उनकी उर्वरा कवित्वशक्ति का परिचायक है। ध्यानशास्त्र लिखते हुए भी सम्भवतः उनके मन में महाकाव्यत्व का उन्मेष रहा हो। 'सर्गबन्धो महाकाव्यम् 2 के अनुसार महाकाव्य की रचना सर्गबद्ध होती है । 'ज्ञानार्णव' का विभाजन भी सर्गों के रूप में है। यह 42 सर्गों में रचा गया एक महाकाव्यात्मक ध्यानयोग विषयक अद्भुत ग्रन्थ है। इसमें भाषा की प्रौढ़ता के साथ प्रसाद एवं माधुर्य गुण का भी अद्भुत समन्वय है । जिस किसी विषय साथ खण्ड : षष्ठ Ph 2 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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