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________________ खण्ड : पंचम जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम मरीचिका, गंधवनगर या स्वप्न में देखे हुए पदार्थों की ज्यों कल्पित और अयथार्थ प्रतीत होते हैं। मृगमरीचिका के वास्तविक रूप को नहीं जानता हुआ मृग उसमें जल पाने को अपने प्राण दे देता है किन्तु यदि वह उसकी वास्तविकता जान ले तो उसकी उस ओर जरा भी प्रवृत्ति नहीं होती। इस दृष्टि को प्राप्त साधक जागतिक भोगोंपभोगात्मक पदार्थों की विनश्वरता एवं क्षणभंगुरता को ज्ञात कर चुका होता है। इसलिए वह उनमें मोहमूढ़ नहीं होता। वह जानता है कि संसार में परमतत्त्व अन्तरात्मा में देदीप्यमान ज्ञानमय ज्योति है जो सब प्रकार की बाधा, विघ्न या पीड़ा से विवर्जित है, न उसमें कोई रोग है, न दोष है। भावात्मक दृष्टि से वह सर्वथा नीरोग है। उसके अतिरिक्त अन्य सभी पदार्थ अनेकानेक विघ्नों से, दोषों से आप्लावित हैं। ऐसा साधक स्वपर का भेदविज्ञान प्राप्त कर लेता है। उसकी इन्द्रियाँ विषयों से प्रत्याहृत हो जाती हैं। उसकी धर्माराधना में कोई बाधा नहीं आती।29 आगे उन्होंने इसी विषय का विशेष स्पष्टीकरण किया है कि धार्मिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप प्राप्त सांसारिक सुखभोगमय पदार्थ इस दृष्टि को प्राप्त योगियों के लिए अनर्थकर ही सिद्ध होते हैं। अग्नि चाहे चन्दन के काष्ठ से उत्पन्न हो तो भी स्पर्श करने वाले को तो जलाती ही है।30 कान्ता दृष्टि : कान्त का अर्थ प्रिय या मनोज्ञ है। इस दृष्टि को प्राप्त योगी के व्यक्तित्व में एक ऐसा सात्विक भावापन्न वैशिष्ट्य आ जाता है कि उसका व्यक्तित्व सहज ही सबके लिए बड़ा कान्त प्रीतिजनक हो जाता है, औरों के मन में उसे देखते ही प्रीति उमड़ पड़ती है। उसे प्राप्त दर्शन अविच्छिन्न होता है।31 उसके योग का छठा अंग धारणा सिद्ध हो जाता है।32 उसमें अध्यात्म के अतिरिक्त अन्यान्य पदार्थ में आनन्द - सुख मानने की वृत्ति नहीं रहती अर्थात् वह तत्त्वमीमांसा में तत्त्वों की सूक्ष्म गहन 29. योगदृष्टि समुच्चय श्लोक, 155-158 पृ. 4748 30. वही, 161 पृ. 49 31. वही, 162 पृ. 50 32. पातंजल योगसूत्र, 3.1 wwwwwwwwwwwwwwww. 19 mmmmmmmmmmmmmmm For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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