SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य हरिभद्र सूरि के ग्रन्थों में ध्यान-साधना खण्ड : पंचम RSite 3. बला दृष्टि : बला दृष्टि में दृढ़ दर्शनोन्मुख सद्बोध वर्द्धनोन्मुख होता है। सुखासनसुखपूर्वक आसन सिद्ध हो जाता है जो योग का तृतीय अंग है।6।। तत्त्वश्रवण की अत्यन्त तीव्र उत्कंठा जागृत होती है तथा क्षेप नामक दोष मिट जाता है जिसके रहने पर चैतसिक विक्षेप उत्पन्न हो जाता है। आचार्य ने यहाँ जो सुखासन शब्द का प्रयोग किया है वह एक विशेष अभिप्राय लिये हए है। योगी को वैसा ही आसन स्वीकार करना चाहिए जिस पर सुखपूर्वक बिना कठिनाई से शान्त भाव के साथ बैठा जा सके। ऐसा होने से शारीरिक तनाव न होने के कारण मन में उद्वेग नहीं आता, ध्यान से चित्त सुस्थिर बना रहता है। साथ-ही-साथ यहाँ एक बात और जानने योग्य है जिसकी तरफ योग के आचार्यों ने संकेत किया है। उन्होंने बाह्य आसन के साथ-साथ आन्तरिक आसन का भी विधान किया है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी आत्मेतर पदार्थ या परवस्तु में जो मन का आसन या स्थिति होती है वह दुःखासन है। आत्मा की स्वाभाविक दशा से वैभाविक दशा में स्थित या आसीन होने से व्यक्ति अशुद्धावस्था में जाता है जिसका परिणाम अनेक रूपों में कष्टजनक है। अपने सहज स्वरूप में, स्वाभाविक दशा में स्थित होना, आसीन होना, टिकना पारमार्थिक दृष्टि से सुखासन है, सुखमय स्थिति है, आध्यात्मिक आनन्दमय स्थिति है। जब यह दृष्टि उपलब्ध हो जाती है तो साधक में असत्, नश्वर पदार्थों के प्रति सहज ही तृष्णा मिटती जाती है। तृष्णा ही समस्त दु:खों का हेतु है। जब वह दूर हो जाती है तब आत्मा सुखासन में स्थित होती है और आन्तरिक सुख में लीन रहती है। साधक के जीवन में साधना में स्थिरता का ऐसा समावेश होने लगता है कि उसके चलने-फिरने, हिलने-डुलने आदि में त्वरा, जल्दबाजी नहीं रहती है। 16. पातंजल योगसूत्र - 2.46 17. योगदृष्टि समुच्चय श्लोक. 49 पृ. 15 ~~~~~~~~~~~~~~~ 12 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy