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________________ आचार्य हरिभद्र सूरि के ग्रन्थों में ध्यान-साधना खण्ड : पंचम दृष्टि के साथ-साथ यथाक्रम इन तीनों से एक-एक तत्त्व भी लेते हैं। ज्यों-ज्यों एकएक दृष्टि सिद्ध होती जाती है त्यों-त्यों इन तीनों आचार्यों द्वारा स्वीकृत तत्त्व, पक्ष या योगांग भी सिद्ध होते जाते हैं। आठों ही दृष्टियों के विश्लेषण में उन्होंने इस विद्या को प्रस्तुत किया है। मित्रा दृष्टि : इस दृष्टि का मित्रा नाम दिये जाने के पीछे सम्भवत: आचार्य हरिभद्रसूरि का ऐसा भाव रहा हो कि सबसे पहले साधक ज्यों ही योग के क्षेत्र में पदार्पण करे, उसके मन में संसार के सभी प्राणियों के प्रति मित्रता का भाव उत्पन्न हो। क्योंकि मित्रभाव का अन्तरात्मा में उदय होने पर हिंसा, द्वेष, वैमनस्य का नाश हो जाता है। इस दृष्टि में साधक का सत् श्रद्धानोन्मुख बोध उदित होने लगता है, किन्तु वह मन्दता लिये रहता है। इस दृष्टि में स्थित साधक अष्टांगयोग के पहले अंग-यम के प्रारम्भिक अभ्यास, इच्छा आदि को प्राप्त कर लेता है। देवकार्य, गुरुकार्य और धर्मकार्य के सम्पादन में उसके खेद नामक आशय दोष का अपगम हो जाता है अर्थात् वह अखेद या अपरिश्रान्त भाव से उत्तम कार्यों में लगा रहता है। साथ-ही-साथ उसमें अद्वेष भाव पनपने लगता है अर्थात् जो व्यक्ति देवकार्य, गुरुकार्य व धर्मकार्य नहीं करते, उनके प्रति उसके मन में द्वेष या मात्सर्य भाव उत्पन्न नहीं होता। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि आचार्य हरिभद्र ने इच्छायम, प्रवृत्तियम, स्थिरयम तथा सिद्धियम के रूप में यम को चार भागों में विभक्त किया है। अहिंसा आदि पाँच यमों के परिपालन में जब साधक के मन में इच्छा जागृत होती है तो वह चाहने लगता है कि मैं इनका जीवन में अनुसरण करूँ। इस मानसिक दशा को इच्छायम कहा गया है। यद्यपि तब तक साधक यमों के परिपालन में संलग्न नहीं होता किन्तु उन्हें अपनाने की आकांक्षा उसके मन में समुदित हो जाती है इसलिए इच्छा द्वारा इसने यम को स्वीकार कर लिया है, ऐसा घटित होता है। इच्छा का अग्रिम रूप प्रवृत्ति है। जब इच्छा क्रियान्विति पा लेती है, तब वह 8. वही, श्लोक - 21, पृ. 6 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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