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________________ खण्ड : तृतीय. जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम huhRC इन शौरसेनी आगमतुल्य ग्रंथों में कषायपाहुड़, षट्खण्डागम, मूलाचार, भगवती आराधना एवं आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथ समाहित हैं। लगभग तीसरी - चौथी शती के आस - पास गुणधर' नामक महान् आचार्य हुए। उन्होंने 'ज्ञानप्रवाद' नामक पाँचवें पूर्व की दसवीं वस्तु के आधार पर शौरसेनी प्राकृत में कषाय-पाहुड़ नामक महान् ग्रंथ की रचना की जो षट्खण्डागम के समकक्ष ही माना जाता है। आचार्य धरसेन का समय विक्रम की दूसरी शताब्दी से पाँचवीं शती के मध्य माना जाता है। इस सम्बन्ध में विद्वानों के अनेक मत हैं। इसी काल के समीपवर्ती आचार्य कुन्दकुन्द थे। दिगम्बरों में आचार्य धरसेन के शिष्य पुष्पदंत और भूतबली द्वारा रचित षट्खण्डागम एक प्राचीन ग्रंथ है। यह माना जाता है कि आचार्य धरसेन को आंशिक रूप से पूर्वज्ञान था। संघ के अनुरोध पर मुनि पुष्पदंत और भूतबली को उन्होंने ज्ञान प्रदान किया, जिन्होंने षट्खण्डागम की, रचना की इसकी भाषा भी शौरसेनी प्राकृत है। शोपनी भाषा की विशेषता: भारत के पश्चिमी भाग की लोकभाषा शौरसेनी प्राकृत में प्रचलित थी। मथुरा अचेल (दिगम्बर) परम्परा का मुख्य केन्द्र था। वह शौरसेनी भाषा-भाषी क्षेत्र का मध्यवर्ती स्थान रहा। उसके पारिपार्श्विक भागों में प्राचीन काल में दिगम्बर मुनियों का अधिक विचरण हुआ। यही कारण है कि उन्होंने साहित्य-रचना में शौरसेनी प्राकृत को माध्यम के रूप में स्वीकार किया। पश्चिम भारत का वह भाग शूरसेन प्रदेश के नाम से विख्यात था। जिस प्रकार मगधप्रदेश के कारण वहाँ की भाषा का नाम मागधी पड़ा उसी प्रकार शूरसेन प्रदेश के कारण वहाँ की भाषा शौरसेनी कहलायी। . यद्यपि अर्द्धमागधी और शौरसेनी दोनों ही भाषायें मूलत: प्राकृत ही हैं किन्तु, स्थान-विषयक अन्तर के कारण उनमें शब्द, धातु, प्रकृति, प्रत्यय आदि के संदर्भ में कुछ-कुछ भिन्नता है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत व्याकरण के अन्त में मागधी, अर्द्धमागधी, शौरसेनी, पैशाची एवं चूलिका पैशाची का वर्णन किया है। वहाँ उन्होंने अर्द्धमागधी और शौरसेनी के जो लक्षण बतलाये हैं उससे उनकी भिन्नता प्रकट होती है। इन पर अर्द्धमागधी एवं महाराष्ट्रीप्राकृत का प्रभाव है। 1. जैन धर्म पृष्ठ 262 ~~~~~~~~~~~~~~~ 3 warrior Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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