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________________ प्राचीन जैन अर्धमागधी वाङ्मय में ध्यान खण्ड : द्वितीय गाँव में कटपूतना के शीत परीषह को भगवान महावीर ने समता भाव से सहन कर परम अवधि ज्ञान प्राप्त किया। 4 भगवान महावीर दृढ़भूमि के पेढ़ाल उद्यान के पोलास चैत्य में अष्टम तप की आराधना कर एक पुद्गल पर दृष्टि केन्द्रित कर ध्यानस्थ खड़े थे। उसी समय स्वर्गलोक में शक्रेन्द्र ने भगवान महावीर की साधना की प्रशंसा की। प्रशंसा को सुनकर संगम नामक देव भगवान महावीर की परीक्षा करने हेतु भूलोक में, जहाँ भगवान ध्यानस्थ थे, वहाँ आया। भगवान महावीर को अनेक उपसर्ग देने लगा। उसने शरीर के रोम - रोम में भयंकर वेदनाएँ दीं, फिर भी भगवान महावीर अपने ध्यान में अडिग स्थिर रहे। प्रतिकूल उपसर्गों में स्थिर देखकर संगम भगवान को अनुकूल उपसर्ग देने लगा। फिर भी भगवान को चलायमान होते न देखकर संगम आहत हो गया। उसने एक रात्रि में महा भयंकर बीस उपसर्ग किये, जो क्रमश: हैं 1. धूलवर्षा की 2. कीड़ियाँ बनकर भगवान के शरीर को छेदा 3. डाँस बनकर दंश दिये। 4. कीड़े बनकर काटा 5. बिच्छू और 6. सर्प बनकर दंश दिये 7. नेवला और 8. चूहा बनकर काटा 9. हाथी और 10. हथिनी बनकर उछाला, रौंदा 11. पिशाच होकर खड्ग से खण्ड-खण्ड किये, 12. व्याघ्र बनकर फाड़ा 13. सिद्धार्थ और 14. त्रिशला बनकर करुण क्रन्दन किया। 15. पैरों पर खीर पकाई। 16. पक्षी बनकर मांस नौंचा। 17. खरबत से भगवान को उठा - उठा कर पटका 18. कलंक लीवात से चक्रवत् घुमाया 19. कालचक्र बनाकर आकाश में ले जाकर पटका। 20. तुम मेरे उपसर्गों से नहीं डिगे इसलिए वर मांगो, इत्यादि। एक रात्रि में बीस उपसर्ग करने पर भी भगवान अविचल रहे। इस प्रकार लगातार छह माह तक संगम उन्हें कष्ट देता रहा। मारणान्तिक वेदना व दारुण कष्टों को सहन करने से व निरन्तर ध्यानस्थ रहने से भगवान को दिव्य शक्ति की प्राप्ति हुई। उस दिव्य शक्ति के सामने अन्तत: मिथ्यादृष्टि संगमदेव को परास्त होकर स्वस्थान पर लौटना पड़ा। 94. वही, गा. 489 एवं उसकी चूर्णि 95. (क) वही, गा. 497-504 (ख) वही, गा. 506 ~~~~~~~~~~~~~~~ 48 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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