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खण्ड : द्वितीय
जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम
लेटकर 171 शारीरिक अवस्थिति और मानसिक चिन्तनधारा की दृष्टि से आचार्य भद्रबाहु ने कायोत्सर्ग के नौ प्रकार किये हैं। 72 कायोत्सर्ग के भेदों में ध्यान की संलग्नता है। ध्यान से कायोत्सर्ग सुफलित होता है ।
शारीरिक स्थिति
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
उत्सृत - उत्सृत
उत्सृत
उत्सृत - निषण्ण
निषण्ण - उत्सृत
निषण्ण
निषण्ण - निषण्ण
निपन्न - उत्सृत
निषण्ण
बतलाये हैं -
खड़ा
खड़ा
धर्म - शुक्ल ध्यान ।
न धर्म - शुक्ल, न आर्त्त - रौद्र, किन्तु
चिन्तनशून्य दशा ।
आर्त्त - रौद्र ध्यान ।
धर्म - शुक्ल ध्यान
न धर्म
शुक्ल, न आर्त्तरौद्र, किन्तु चिन्तनशून्य दशा ।
निपन्न निपन्न
. लेटकर
आर्त्त - रौद्र ध्यान ।
'आवश्यक चूर्णि' में आचार्य जिनदास गणिमहत्तर ने कायोत्सर्ग के दो प्रकार
71. आवश्यक निर्युक्ति 1475 72. वही 1459-60
खड़ा
बैठा
बैठा
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बैठा
लेटकर
लेटकर
1. द्रव्य कायोत्सर्ग और 2. भाव कायोत्सर्ग |
मानसिक विचार
धर्म - शुक्ल ध्यान
न धर्म - शुक्ल, न आर्त्त
रौद्र, किन्तु
चिन्तनशून्य दशा ।
आर्त्त - रौद्र ध्यान ।
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