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प्राचीन जैन अर्धमागधी वाङ्मय में ध्यान
खण्ड : द्वितीय
कायोत्सर्ग दो शब्दों से बना है - काया + उत्सर्ग अर्थात् शरीर को छोड़ना। काया के ग्यारह पर्यायवाची शब्द हैं - काय, शरीर, देह, बोदि, उपचय, उच्छ्य, समुच्छ्य, कलेवर, भस्त्रा, तनु और पाणु। उत्सर्ग के पर्यायवाची शब्द ग्यारह हैं - उत्सर्ग, व्युत्सर्जन, उज्झन, अवकिरण, छर्दन, विवेक, वर्जन, त्यजन, उन्मोचना, परिशातना एवं शातना।।
कायोत्सर्ग के दो प्रकार बताये गये हैं - 1. चेष्टा कायोत्सर्ग, 2. अभिनव कायोत्सर्ग।68 चेष्टा कायोत्सर्ग दोषविशुद्धि के लिए किया जाता है। यात्रा, शौच, आदि के लिए बाहर आने-जाने में जो प्रवृत्ति होती है या निद्रा आदि में जो दोष लगता है उसकी शुद्धि के लिए यह किया जाता है और अभिनव कायोत्सर्ग दो स्थितियों में किया जाता है - दीर्घकाल तक आत्मचिन्तन के लिए आत्मशुद्धि के लिए साधक मन को एकाग्र करने का प्रयत्न करता है और दूसरा संकट आने पर। जैसे - राजा, विप्लव, अग्निकाण्ड, दुर्भिक्ष आदि। चेष्टा कायोत्सर्ग से शरीर की चंचलता का निरोध होता है। अत: इसे कायिक ध्यान भी कहा गया है।69
चेष्टा कायोत्सर्ग का काल उच्छ्वास पर आधारित है। विभिन्न स्थितियों में वह कायोत्सर्ग आठ, पच्चीस, सत्ताईस, तीन सौ, पाँच सौ और एक हजार आठ उच्छ्वास तक किया जाता है।
अभिनव कायोत्सर्ग का काल जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट एक वर्ष का है। बाहुबली ने एक वर्ष तक कायोत्सर्ग किया था। दोष - विशुद्धि के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है, उस कायोत्सर्ग के पाँच प्रकार होते हैं - दैवसिक कायोत्सर्ग, रात्रिक कायोत्सर्ग, पाक्षिक कायोत्सर्ग, चातुर्मासिक कायोत्सर्ग और सांवत्सरिक कायोत्सर्ग।
कायोत्सर्ग तीन प्रकार से किया जा सकता है। खड़े होकर, बैठकर एवं
66. वही, 1460 67. वही, 1465 68. वही, 1466 69. वही, 1484, 1488 70. योगशास्त्र 3 पत्र 25 ~~~~~~~~mmmmmm
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