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________________ प्राचीन जैन अर्धमागधी वाङ्मय में ध्यान खण्ड : द्वितीय “मैं छद्मस्थ अवस्था में था तब ग्यारह वर्ष का साधु पर्याय पालता हुआ निरन्तर दोदो दिन के उपवास करता हुआ, तप एवं संयम द्वारा आत्मा को भावित, स्वभावाप्लुत करता हुआ, ग्रामानुग्राम विहरण करता हुआ सुंसुभार नगर पहुँचा । वहाँ अशोक वनखण्ड नामक उद्यान में अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वी पर स्थित शिलापट्ट के पास आया। दोनों पैर संहृत किये - सिकोड़े, आसनस्थ हुआ, भुजाओं को लम्बा किया फैलाया । एक पुद्गल पर दृष्टि स्थापित की । नेत्रों को अनिमेष रखा, देह को थोड़ा झुकाया । अंगों को, इन्द्रियों को यथावत् आत्मकेन्द्रित रखा। एक रात्रि की महाप्रतिमा स्वीकार की। यह क्रम आगे विहारचर्या में चालू रहा।' 137 PPP भगवान के तपश्चरण का यह प्रसंग उनके ध्यान, मुद्रा, आसन, अवस्थिति आदि की ओर इंगित करता है। इसके आधार पर स्पष्ट रूप में तो कुछ नहीं कहा जा सकता, किन्तु इतना अवश्य अनुमेय है कि उनके ध्यान का अपना कोई विशेष क्रम अवश्य रहा, जिसका विशद वर्णन हमें जैन आगमों में प्राप्त नहीं होता । उपर्युक्त संदर्भों से यह व्यक्त होता है कि जैन साधना के अन्तर्गत साधक ध्यान का विशेष रूप से अभ्यास करते हैं। यह उनकी दैनंदिन चर्या का मुख्य भाग है। ध्यान के साथ साथ आसन विशेष के भी प्रयोग होते रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरवर्ती काल में ध्यानसाधना का प्रयोग कम होता गया तथा अनशन आदि तप पर अधिक जोर दिया जाता रहा । सम्भव है ऐसी विशेष रचना भी रही हो, जिसमें ध्यान-विषयक सभी पक्षों का साङ्गोपांग विवेचन हुआ हो किन्तु वह साहित्य सुरक्षित न रह सका हो । आचार्य भद्रबाहु के सम्बन्ध में यह उल्लेख है कि भगवान महावीर के निर्वाण के लगभग 160 वर्ष पश्चात् पाटलिपुत्र में आचार्य स्थूलिभद्र के नेतृत्व में आगमों की प्रथम वाचना हुई । इस वाचना में बारहवाँ अंग 'दृष्टिवाद' किसी को स्मरण नहीं था। उसके ज्ञाता केवल आचार्य भद्रबाहु थे । वे उस समय नेपाल में 'महाप्राण ध्यान' की साधना कर रहे थे । वह 'महाप्राण ध्यान' क्या था इसका कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता । सम्भवत: प्राणवायु के आधार पर ध्यान की कोई विशेष प्रक्रिया रही होगी । 37. वही, 3.2.105 Jain Education International 28 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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