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________________ खण्ड : द्वितीय जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम यहाँ एक बात और विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि ध्यानयोग को सम्यक् समाहृत करने का यहाँ यह अभिप्राय है कि ध्यानाभ्यास से पूर्व उसे देहशुद्धि, श्वासशुद्धि, भावशुद्धि की दृष्टि से यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि की साधना भी, जितनी ध्यानसाधना में अपेक्षित है, उतनी करनी चाहिए। योग का पहला अंग यम है जिसके अन्तर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्म, अपरिग्रह का समावेश है। इन पाँचों यमों का जीवन में अपने सामर्थ्य के अनुसार अभ्यास करना आवश्यक है। यद्यपि सामान्य साधक के जीवन में यह सम्पूर्णत: सध नहीं पाता क्योंकि इनकी सम्पूर्णता तो तब सध पाती है जब मानसिक, वाचिक, कायिक, कृत, कारित, अनुमोदना पूर्वक इनकी आराधना हो। किन्तु इनमें निष्ठाशील होना, जीवन में इनके अनुसरण में विश्वास रखना तो सभी के द्वारा शक्य है। इसी प्रकार नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार के सम्बन्ध में ज्ञातव्य है। इनका भी यथाशक्य अभ्यास किया ही जाना चाहिए। इस प्रकार तन, मन और भाव की निर्मलता सध जाने पर ध्यानयोग का सम्यक् अवलम्बन हो जाता है। जैनयोग के स्वनामधन्य संप्रतिष्ठित आचार्यश्री हरिभद्रसूरि ने 'योगबिन्दु' में पूर्वसेवा के नाम से कुछ ऐसी बातों का उल्लेख किया है जो योग और ध्यान साधना के पूर्व जीवन में उतारी जानी चाहिए।24 जब तक मन में अहिंसा, करुणा, मैत्री, समता, मृदुता, नम्रता जैसे निर्मल, कोमल भाव अवस्थित न हों फिर भी कोई व्यक्ति सीधा ही ध्यान जैसी उच्च साधना में संलग्नता का पुरुषार्थ करे तो वह कैसे सफल हो सकता है ? सूत्रकार के द्वारा जो, ‘सम्यक्' समाहृत, पद लिखा गया है, इसमें इसी प्रकार का भाव अन्तर्निहित है। खेद का विषय यह है कि आज ध्यानयोग के उपक्रम तो बहुत चलते हैं किन्तु ध्यानाभ्यास के पूर्व जैसी कायिक, मानसिक तैयारी होनी चाहिए उस पर बहुत कम लक्ष्य दिया जाता है। यही कारण है कि क्षण भर के लिए जब तक साधक ध्यान में बैठता है, तब तक शान्ति मिलती है, उठने पर विलुप्त हो जाती है। ये सन्दर्भ इस तथ्य के परिचायक हैं कि आध्यात्मिक साधकों यानी संयमियों 24. योगबिन्दु श्लोक 101.130 ~~~~~~~~~~~~~~~i 13 ~~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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