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________________ का रूप ) प्रकट की गई ( है ) । [ 9 ] इस वचन को सुनकर ( माता का मोह शान्त हुआ (मृत) हाथ-पैरों को छोड़कर ( वह) उत्तम ज्ञानवाली हुई । [10] फिर देव के द्वारा अपने मुनिनाथ (गुरु) के पास जाया गया । (वे) भयंकर और श्रेष्ठ गुफा के भीतर ही (निवास करते थे) । [11] गुरु चरणों को तीन प्रदक्षिणा देकर देव के द्वारा वन्दना की गई (और) तब ( उनके समक्ष ) ( अपने दोष) निन्दित किए गए । घत्ता- - ( गुरु के समक्ष ) ( उनकी ) बहुत स्तुति ( को ) व्यक्त करके ( श्रौर ) ( उनको अपने सम्बन्ध की ) पुरानी कथा कहकर (देव ने) (कहा) (कि) (हे गुरु) तुम्हारी कृपा से मेरे द्वारा प्रशंसनीय और बहुत सुखों से आच्छादित (यह ) देव का पद प्राप्त किया गया । इस प्रकार कहकर (उसके द्वारा) (फिर) प्रणाम किया गया । अपभ्रंश काव्य सौरभ 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only [ 81 www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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