________________
82
1. सायरु उपरि तणु धरइ तलि घल्लइ रयणाई । सामि सुभिच्च विपरिहरइ संमारणेइ खलाई ||
2.
3. जो गुण गोवइ प्रपणा पयडा करइ परस्सु तसु हउँ कलि-जुगि दुल्लहहो बलि किज्जउं सुप्रणस्सु ||
5.
4. दइ घडावइ वणि तरुहुँ सउरिहं पक्क फलाई । सो वरि सुक्खु पइट्ठ रग वि काहिं खल-वयणाई ||
6
पाठ-14
हेमचन्द्र के दोहे
7.
मारेइ ।
वरुड्डाणे पड खलु श्रप्पणु जिह गिरि-सिंगहुं पडि सिल अन्तु वि चूरु करेइ ॥
8.
धवलु विसूरइ सामि ग्रहो गरुप्रा भरु पिक्खेवि । हउं कि न जुत्तउ दुहुं दिसह खंडइं दोणि करेवि ||
कमलई मेल्लवि अलि उलई प्रसुलहमेच्छरण जाहं भलि ते
जीविउ कासु न वल्लहउं धणु पुणु कासु न इट्ठ । दोणि वि श्रवसर - निवडिग्रई तिण-सम गणइ विसिट्ठ ॥
Jain Education International
करि-गंडाई महन्ति । ग वि दूर गरपन्ति ॥
बलि प्रब्भत्थणि
जइ इच्छहु वहुत्तणउं देहु
महु - महणु लहुई हुआ सोइ । म मग्गहु कोइ
1
For Private & Personal Use Only
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
www.jainelibrary.org