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इय वयणु सुरिणवि उवसंतमोह देवे पुणु रिणय-मुणिरगाह पासि ति पयाहिरिण देप्पिणु गुरुपयाई
कर-चरण मुइवि जाया सुबोह ॥9 वरु गुह-अभंतरि वि गय तासि ॥ 10 देवे वंदिय ता गरहियाई ॥11
घत्ता-बहु थोत्तु पयासिवि चिरकह मासिवि तुम्ह पसाएँ देव पउ ।
मइँ पाविउ धण्णउ बहु-सुह छण्णउ एम भरिणवि पणवाउ कउ ॥ 12
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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