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घत्ता-(माता ने कहा कि) (वह) निज छाती से लगाया गया, दूध से पोषित दूसरों की सेवा से ही (वह) पाला गया। बड़े कष्टों से (वह) रक्षण किया गया । (अपनी) देह से (वह) स्नेहपूर्वक संभाला गया । उसको हृदय कैसे भूलेगा ?
3.19
[1] मैं दुःख-दरिद्रता से युक्त होता हुआ पूर्व में किए हुए दुष्कर्म द्वारा नचाया गया। [2] (प्रारम्भ में) (मैं) धन्धे-रहित (होकर) भूख-प्यास-सहित (रहा) (और) माता के साथ विदेश में फिरा। [3] उस समय मैं अशोक मामा के श्रेष्ठ घर में प्रवृत्त हुआ (और) रहा । [4] मेरे द्वारा माता के साथ इस संसार-सरोवर के विनाश के लिए (समर्थ) श्रेष्ठ मुनि के लिए (पाहार)-दान दिया गया। [5] मैं बछड़ों के समूह की रक्षा के लिए (वन में) गया (और) जैसे ही (मेरा) भय नष्ट हुआ (मैं) वहाँ सो गया। [6-7] (तेज) वायु से प्राघात प्राप्त (पाहत) बे (बछड़े) अपने घर में आ गए (और) भय से कांपा हुआ (भयभीत) मैं गुफा के द्वार पर बैठा । वहाँ आगम बहुत सुना गया और संसार का स्वरूप चित्त में समझा गया। [8] जब (मैं) (वहाँ) बैठा था तब मैं सिंह के द्वारा मारा गया । (वहां से मरकर) (मेरे द्वारा) श्रेष्ठ देव का विशिष्ट पद पाया गया। [9] (इस तरह से) मुनि के वचन के प्रसाद से दु:ख के बोझ को काटकर (एक) क्षण में (मैं) सुख के घर (स्थान) को गया। [10] इधर उसकी माता दुःख से भरी हुई थी (और) अत्यन्त कष्ट से (उसके द्वारा) रात्रि बिताई गई। [11] (तब) सब ही सुप्रभात में (उपस्थित) होकर मिले । माता के साथ (उसको) खोजने के लिए (सभी) चले । [12] (उनके द्वारा) सारे वन में (वह) खोजा गया। महान शोक के कारण नगर के जन कृश हो गये (थे)।
घत्ता-फिर उसके मार्ग-चिह्न देखते हुए, जाते हुए, थके हुए (वे सब) पर्वत की गुफा के दरवाजे पर पहुंचे। वहाँ उसके शरीर के हाथ और पैर दसों दिशाओं में पड़े हुए देखे गए • जो) बहुत दु:ख के जनक (थे)।
3.20
[1] उन (हाथ-पैरों) को देखकर (शोक के द्वारा) माता मूच्छित कर दी गई ।(और) सब भी उस स्थान पर दुःखी (हुए) । [2] अमूच्छित होकर (मूरिहित होकर, होश में आकर) माँ ने चिल्लाहट (की) (कि) छोड़कर (चला गया) (फिर) रोने का चिह्न (प्रकट हुमा) । हाय ! (मैं) अनाथ हो गई (हूँ)। [3] हाय-हाय ! हे मेरे पुत्र ! मैं अत्यन्त दुःख में (हूँ)। मैं (तेरे द्वारा) निष्कारण उपेक्षा करके क्यों छोड़ दी गई ? [4] सबके रोकते हुए होने पर (भी) (तुम) (वन में) क्यों गए ? (और) (फिर) हाय-हाय !
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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