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________________ घत्ता - जि रियउरि धरियउ खीरें भरियउ परपेसणेण जि पोसियउ । मह - दुक्ख पालिउ देहे लालिउ तं वीसरइ केम हियउ ॥ 17 हउँ होंत दुख-दालिद्द - जडिउ णिबंधउ छुह - तिस - संभरिउ थक्कइ सोय-माम जि धरि मइ दाणु पदिण्णउँ मुरिणवरहु हउँ वच्छउलहँ रक्खणहँ गउ पवणाय ते रिणय श्राय घरि थक्क तहिं प्राय बहु सुणिउ जा रिगवसमिता सिंघेरण हउ मुणिवयणपसाएँ दुक्खभरु एतह तह मायरि दुहभरिया हुय सुप्पहाए सयल जि मिलिया सव्वत्थ वणम्मि गवेसियउ मुच्छाविय जणरिण रिएवि ताइ उम्मुच्छिवि मायर मुद्दवि धाह हा हा महु गंदणु हउँ सदुक्खि वारं सव्वहँ गयउ काइ 76 1 3.19 Jain Education International पुव्वकिय दुक्कम्मेर रगडिउ जणणिए सहु देसंतर फिरिउ हउँ प्रत्थि पवट्टिउ तह पवरि सहुं जरगणिए हिणिय भवसरहु तहि सुत्तउ जावहि विगय - भउ हउँ भयभीयउ कंदरि - विवरि संसार - सरूवउ वि चित्ति मुणिउ हउँ सुरवर जायउ चिय faas छिदिवि खरिण जायउ सुक्खघरु महदुक्खे खविय विहावरिया सहँ जरिए तं जोयहुं चलिया मह सोएँ पुरजणु सोसियउ घत्ता - तहुँ खोज्जु रिणयंतइँ जतइँ संतइँ पत्तइँ गिरि-गुह-वारि पुणु । तहिँ तह कर चलणइँ बहु- दुह-जरगणइँ दिट्ठइँ दहदिसि पडिय तणु ॥ 13 3.20 π 1 11 2 ॥ 3 ॥ 4 11 5 1 6 ॥ 7 ॥ 8 For Private & Personal Use Only || 9 10 1 11 11 12 11 2 सयल वि दुक्खाविय तेत्थु ठाइ # 1 रोवरणह लग्ग हा हुय प्रणाह किं मुक्की णिक्कारणि उवेक्खि हा-हा कि णायउ गेह-ठाइ ॥। 3 11 4 [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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