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________________ घत्ता -- तब किसी ढीठ (व्यक्ति) के द्वारा शीघ्रता से राजा के आगे कहा गया ( कि ) हे देव ! तुम्हारा सुत (पुत्र) मेरे द्वारा देखा गया ( है ), वह ( तुम्हारे ) नए मन्त्री द्वारा मार दिया गया ( है ) | । [1] उस बात को सुनकर पृथ्वी का नाथ (राजा) सरलबाहु, मन्त्री से प्रसन्न हुआ । [2] ( राजा ने कहा कि जंगल में दिए गए ) तीन फलों में से मन्त्रीवर के एक फल का ऋण मेरे द्वारा चुका दिया गया ( है ) [3] ( मन्त्री ने कहा कि ) हे नाथ ! अन्य दो ( फलों के ऋण) को आज ही क्षमा कीजिए । पृथ्वी का मुखिया (राजा) क्षरण भर में प्रसन्न हुआ । [4] राजा के स्नेह को जानकर मन्त्री के द्वारा सुन्दर देहवाला राजा का पुत्र सौंप दिया गया । [5] हे नरेश्वर ! ( श्राप ) ( मेरे ) परम मित्र हो ! हे देव ! मेरे द्वारा तुम्हारा चित्त पहिचान लिया गया ( है ) । [6] ( इस तरह से ) वणिक के वचन को सुनकर उस राजा के द्वारा (वणिक के लिए) खूब पुरस्कार सार्वजनिक रूप से घोषित किया गया । [7] ( इस प्रकार ) जो मनुष्य अच्छों की संगति को धारण करता है, वह मन से चाही गई सम्पत्ति को प्राप्त करता है । [8] हे पुत्र ! यह उच्च (पुरुष) की कहानी (जो ) गुणों की परम्परावाली है, तेरे लिए कही गई है (इसको ) (तू) हृदय में समझ । 2.18 धत्ता - खेचर ( विद्याधर ) के द्वारा हितकारी बुद्धि से करकंड समस्त कलाएँ सिखाया गया । इसकी नीति से जो मनुष्य व्यवहार करता है वह अवश्य ही भूमण्डल को उपभोग करता है । अपभ्रंश काव्य सौरभ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only [ 73 www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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