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________________ उडि-खग्ग सव्वहिं करि धारिय दूरह हुंति तेरण नियच्छिय एहु मारत्थि इह प्रावहिं इय मरिण मंतिवि पुणु भयतट्ठउ ते बोल्लावहिं भो गिहि श्रावहि वच्छउलइँ रिणयगेहि पराणिय तुज्भु जर रिण तु दुक्ख सल्लिय तह वि र सो रिणयत्तु भयभीयउ जाय रयणि ते सीह-भयाउर तासु जरगरि महदुक्ख तत्ती हा हा किह सुव दंसणु होसइ भाय-भाय हा किम जीवेसमि हा हा किं बंधव णिचितउ हउँ तुव सरणि विएसे पत्ती महु मणु प्रच्छइ बहुदुक्खायरु प्रच्छहि कणु म कंदहि बहिणी 74 ] Jain Education International: पाठ- 13 tomकुमारचरि सन्धि-3 3.16 11 1 11:5 11 6 || 7 11 8 भोगवइ चल्लिय विरिणवारिय हक्क दित प्रावंत वि पेच्छिय ॥ 2 वच्छउलइँ गउ कत्थ विपावहिं ॥। 3 पच्छउ वलिवि रिएवि वरिण णट्ठउ ।। 4 एहि एहि मा भयवसु धावहि तुहु इ थक्कु रण मइए जारिणय मा वरिण जाहि मुइवि एकल्लिय मुराइ पर्वच सयलु इणु कीयउ पल्लट्टिवि गय ते पुणु गियघर हुय पिरास खरिण पगलियणेत्ती दुट्ठ विहिहिं पुणु - पुणु सा कोसइ सुबाहु सुवत्तु किम पेच्छेसमि महु सुउ विसमावत्यहिँ पत्तउ करहि गंपि महु पुत्तहु तत्ती इय कंदंति रिणवारइ भायरु पुर-सयासि सो विसइ रयरणी ।। 16 11 9 || 10 ॥ 11 11 12 1113 11 14 # 15 For Private & Personal Use Only [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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