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घत्ता-ता केण वि घिठे तुरियऍण णरणाहहाँ अग्गई मणिउ ।
उवलक्खिउ तुह सुउ देव मइँ सो गवलई मंतिएँ हरिणउ ॥9
तं वयणु सुरणेविणु सरलबाहु तिहिं फलहिं मझै एक्कहाँ फलासु प्रवराह दोणि अज्ज वि खमीसु परियारिणवि मंतिइ रायणेहु प्राइ होहि गरेसर परममित्तु वणिवयणु सुरणेविण गरवरेण गुरुवारण संगु जो जणु वहेइ एह उच्चकहाणी कहिय तुझ
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संतुट्ठउ मंतिहँ धरणिणाहु ॥1 रिणरहरियउ रिणु मई मइवरासु ॥2 खरिण हुयउ पसण्णउ धरणिईसु ॥3 रिणवणंदणु अप्पिउ दिव्ववेहु ॥4 मइँ देव तुहारउ कलिउ चित्तु ॥5 अइपउरु पसाउ पइण्णु तेण ॥6 हियइच्छिय संपइ सो लहेइ ॥7 गुणसारणि पुत्तय हियई बुझ ॥8
घत्ता-करकंडु जरणाविउ खेयरई हियबुद्धिएँ सयलउ कलउ ।
इय णित्तिएँ जो गरु ववहरइ सो भुंजइ णिच्छउ भूवलउ ॥9
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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