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पाठ-12
करकण्डचरिउ
सन्धि -2
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[1] इसके विपरीत हे पुत्र ! उच्च (संगति) की कहानी सुन । जिससे नाना प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त की जाती है। [2] हृदय से नीच की संगति को समझकर उस (वणिक) के द्वारा उच्च (व्यक्ति) के साथ संग किया गया । [3] वाराणसी नगर में मन को प्रसन्न करनेवाला अरविंद नामक राजा था। [4] अपने मन में प्रसन्नता को धारण करता हुआ (वह) एक दिन शिकार के लिए गया । [5] वह जलरहित जंगल में फंस गया, वहाँ पर भूख (और) प्यास के द्वारा व्याकुल किया गया । [6] (तब) वणिक के द्वारा अमृत से बने हुए वे सुखकारी फल उस (राजा) को दिए मए । [7] राजा उस श्रेष्ठ वणिक पर प्रसन्न हुआ, (और) घर जाकर उसको पुरस्कार दिया गया। [8] (अपने ऊपर) महान उपकार समझनेवाला होने के कारण, उस (राजा) के द्वारा वणिक मन्त्री-पद पर रखा गया ।
घत्ता-(वे) दोनों (जो) तेज में सूर्य और चन्द्रमा (के समान) थे, (जो) गुणसमूहरूपी रत्नों के (व) शील के निधान (थे),(जो) गंभीरता में सागर के समान (थे), स्नेहपूर्वक वहाँ पर रहने लगे।
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1] तब एक दिन उस राजा के पुत्र का हरण करके उस मन्त्रीवर के द्वारा (भागा गया) । [2] (वह) (उसके) ग्राभूषणों को लेकर शीघ्रता से (स्नेहशील) विलासिनी (महिला) के सुखकारी घर को गया। [3] (बे) (प्राभूषण) (जिनका) मूल्य चला गया (है), (जो) मनुष्यों के नयनों के लिए प्रिय (हैं), उस विलासिनी (महिला) के लिए वणिक के द्वारा वहाँ प्रदान किए गए। [4] शरद ऋतु में प्राने वाले चन्द्रमा की तरह मुखवाली (उस) बिलासिनी को उस (वणिक) के द्वारा फिर कहा गया। [5] मेरे द्वारा राजा का पुत्र मारा गया (है) । यह सारी (बात) ही (उसके द्वारा) स्थिर स्नेहवाली (विलासनी) को कही गई । [6] उस (बात) को सुनकर उस (विलासिनी) के द्वारा (वरिपक के लिए) सस्नेह कहा गया (कि) यह (बात) किसी के लिए भी (तुम) प्रकट मत करना। [7] यहाँ पर राजा के द्वारा पुत्र को न पाते हुए होने के कारण, उसके द्वारा नगर में ढोल-(बजाकर) आज्ञा करवायी गयी (है)। [8] (और राजा के द्वारा कहलवाया गया कि) जो कोई भी राजा के पुत्र को बताता है (बतायेगा) वह ही सम्पत्ति के साथ भूमि को पायेगा ।
अपभ्रंस काव्य सौरभ ]
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