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पाठ-12
करकण्डचरिउ
सन्धि -2
पुणु उच्चकहारणी रिगसुरिग पुत्त परिकलिवि संगु रगोचहाँ हिएण वाणारसिणयरि मणोहिरामु संतोसु वहंतउ रिणयमणम्मि जलरहियहिँ अडविहिँ सो पडिउ प्रमिएण विरिणम्मिय सुहयराइ संतुट्ठउ तहाँ वरिणवरहों राउ उवयारु महंतउ जारगएण
2.16 संपज्जइ संपइ जे विचित्त ॥1 उच्चेण समउ किउ संगु तेरण ॥2 प्ररविंदु रणराहिउ अस्थि रणामु ॥3 पारद्धिहे गउ एक्कहिं दिणम्मि ॥4 तहिँ तण्हएँ भुक्खएँ विण्रण डिउ ॥5 तहाँ दिण्णइँ वरिणरणा फलइँ ताई ॥6 घरि जाइवि तहाँ दिण्णउ पसाउ ॥7 वरिण रिणहियउ मंतिपयम्मि तेरण ॥8
घत्ता-अणुराएँ विणि वि तहिँ वसहिं दिणयरतेयकलायर ।
गुणगणरयरणहँ सीलणिहि गहिरिमाई रणं सायर ॥9
2.17
ता एक्कहिँ विरिण मंतीवरेण आहरणइँ लेविण दिहिकरासु गयमोल्लइँ जणणयपहँ पियाइँ सरयागमससहरमाणणीहैं मई मारिउ णंदणु रणरवईहिँ तं सुरिणवि ताइँ पभरिणउ सणेहु एत्तहिँ अलहंते सुउ रिणवेण जो रायहाँ णंदणु कहइ को वि
तहाँ रायहाँ णंदणु हरिवि तेरण ॥1 गउ तुरिउ विलासिरिणमंदिरासु ॥2 तहिं वरिगणा ताह समप्पियाइँ ॥3 पुणु कहियउ तेण विलासिणीहैं ॥4 इउ कहियउ सयलु वि थिररईहि ॥5 मा कासु वि पयडु करेहि एहु ॥6 देवाविउ डिडिमु णयर तेण ॥7 सहुँ दविणइँ मेइणि लहइ सो वि ॥8
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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