________________
सुदर्शन रखा जाए (जो ) सज्जन और कामिनियों के कानों के लिए मनोहर है। [4] तब
जिनदासी मन में आनन्दित हुई और विशिष्ट मुनि को प्रणाम करके स्वनिवास को गई । [5] शीघ्र (शुभ) दिन (और) शुभमास में दिव्य (और) प्रत्यन्त सुन्दर पालना बाँधा गया । [6-7-8] वहाँ रहा हुआ बालक बढ़ने लगा, जैसे देव-बालक देव- पर्वत (सुमेरु) पर ( बढ़ता है), जैसे व्रतपालन से धर्म बढ़ता है, जैसे स्नेही के दर्शन से प्रेम बढ़ता है, जैसे नई वर्षा ऋतु में कंद (बादल) बढ़ता है, इस प्रकार दोधक छंद व्यक्त किया गया ( है ) ।
घत्ता - जिस प्रकार समुद्र और जग के अन्धकार को दूर करनेवाला चन्द्रमा बढ़ता हुआ अच्छा लगता है, ( उसी प्रकार ) सज्जनों के मन को अच्छा लगनेवाला (जिनदासी का ) दुर्लभ (पुत्र) पुरुदेव (ऋषभदेव) के सुत (मरत) के समान (अच्छा लगता है) ।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
[ 69
www.jainelibrary.org