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किज्जउ तेरण सुदंसणु लामो
विवि जईसं
तो जिणयासे सोहणमासे दिर छुडु दित्तं देवमहीहरि रणं सुरवच्छो वड्ढइ णं वयपालणें धम्मो वड्ढइ रणं गवपाउसि कंदो
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सज्जणका मिणिसोत्तहिरामो चित्तें पट्टि गया सरिणवासं ॥4 बद्ध पालरणयं सुविचित्तं
वड्ढइ तत्थ परिट्ठिउ वच्छो वड्ढr रणं पियलोयणें पेम्मो एस पयासिउ दोहयछंदो
घत्ता -- जगतमहरु ससहरु मयरहरु जिह वडूढंतउ भावइ । मरणवल्लहु दुल्लहु सज्जरग हँ पुरएवहाँ सुउ णावइ ॥ 9
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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