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________________ ब्रह्मदत्त नरक में गया । [23] चंचल और निर्लज्ज चोर गुरु, माँ और बाप को ( भी ) श्रादरनहीं मानता है। [24] वह उनको (तथा) दूसरों को भी निज भुजाओं के बल से (तथा) जालसाजी से ठगता है। [25] (वह) उपेक्षित मूढ़ (व्यक्ति) संकटरूपी कुए में ( गिरता है) (और) (वह) निद्रा और भूख को नहीं पाता है। [26] यह (वह) पद्धडिया छंद (है), (जिसको) विद्युल्लेखा नाम से ख्याति ( है ) । धत्ता - (चोर) पकड़ा जाता है, बांधकर ले जाया जाता है, चौराहे और मुख्य मार्ग पर (उसके) (चोरी के कार्य को फैलाकर (वह) दंडित किया जाता है तथा शहर के बाहरी भाग में काटा जाता है (और) मारा जाता है । 2.11 [1] परद्रव्य में अनुरक्त होने के कारण अंगारक (चोर) के द्वारा मूलियों पर धारण करनेवाला मरण प्राप्त किया गया। [2] इसको जानकर भी मनुष्य उस समय ( चोरी करने के समय) मूर्ख ( बन जाता है) (और) चोरी करता है । (दुःख है कि वह ) ( चोरी करने को नहीं छोड़ता है। [3] लोक में जो अन्य की स्त्री को चाहता है, वह ( उससे मिलता-जुलता है, ( उसकी प्रशंसा करता है (और) ( उसके लिए) लालायित रहता है । [4] जगत् में (अपमान) सहकर (वह) नरक में गिरता है । आदरणीय रावण (भी) श्रज्ञानी हुना (और) पर स्त्री में अनुरक्त हुआ । [13] आखिरकार विनाश को ( पहुँच गया । ( इस तरह से ये सातों व्यसन श्रनिष्टकर (होते हैं) । 8.7 [1] अन्य सुन्दर आभूषणों ( समान) शील भी युवती का आभूषण समझा गया (है) (और) कहा गया ( है ) । [2] जो सीता रावण के द्वारा हरण करके ले जाई गई (बह), जैसा कि बतलाया जाता है, शील के कारण अग्नि के द्वारा नहीं जलाई गई। [3] उसी प्रकार कठोर शीलधारण की हुई अनन्तमती विद्याधरों और किरात (जंगल में रहनेवाली एक जाति के मनुष्यों) के उपद्रव से रहित हुई । [4] (नदी के) तेज धारवाले जल में डुबाई गई रोहिणी, शील गुरण के कारण नदी के द्वारा नहीं बहाई गई । [5] नारायण, बलदेव, चक्रवर्ती तथा तीर्थंकरों की माताएं आज भी (शील के कारण ) तीनलोक में प्रसिद्ध ( हैं ) । [6] ये शीलरूपी कमल-सरोवर की हंसिनी ( थीं) (अतः ) ( वे) नागों, मनुष्यों, आकाश में चलनेवाले (विद्याधरों) और देवों द्वारा प्रशंसित ( थीं) । [7] हे माता ! (यदि ) (कोई) (जलकर) राख का ढ़ेर हो जाए (तो) (यह) अधिक अच्छा ( है ), ( किन्तु ) काम-वासना के कारण पागलपन पैदा करनेवाला कुशील ( अच्छा ( है ) । [8] विद्वान व्यक्ति के द्वारा शीलवान (मनुष्य) प्रशंसा किया जाता है । (कोई बताए ) शीलरहित होने से क्या ( प्रयोजन) सिद्ध किया जाता है ? ) नहीं अपभ्रंश काव्य सौरभ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only [59 www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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