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पत्ता-इय जाणेविणु सीलु परिपालिज्जएँ माएँ महासइ।
णं तो लाहु णियंतिहें हले मूलछेउ तुह होसइ ॥9
8.9
ण फिट्टइ पेयवणे इह गिद्ध ___ण फिट्टइ पंकएँ भिंगु पइट्ठ ॥1 ण फिट्टइ तुंबरणारयगेउ ण फिट्टइ पंडियलोयविवेउ ॥2 ए फिट्टइ दुज्जणे दुट्ठसहाउ ण फिट्टइ णिद्धणचित्तै विसाउ ॥3 ण फिट्टइ लोहु महाधणवंत ण फिट्टइ मारणचित्तु कयंत ॥4 ण फिट्टइ जोव्वणइत्तै मरटु ण फिट्टइ वल्लहँ चित्तु चहुटु ॥5 ण फिट्टइ विझि महाकरिजहु ण फिट्टइ सासऍ सिद्धसमूहु ॥6 ण फिट्टइ पाविहे पावकलंकु ण फिट्टए कामुयचित्तै झसंकु ॥7 ण फिट्टइ प्रायह जो प्रसगाह सुछंदु वि मोत्तियदामउ एह ॥8 पत्ता-अहवा जं जिह जेण किर जिह अवसमेव होएवउ ।
तं तिह तेण जि देहिऍण तिह एक्कंगेण सहेवउ ॥9
8.32
सुलहउ पायालए गायणाहु सुलहउ णवजलहरै जलपवाहु सुलहउ करसोरऍ घुसिपिंडु सुलहउ दीवंत विविहभंडु सुलहउ मलयायले सुरहिवाउ सुलहउ पहुपेसरणे कऍ पसाउ सुलहउ रविकंतमरिणहिँ हुयासु सुलहउ प्रागमै धम्मोवएस
सुलहउ कामाउरै विरहडाहु ॥। सुलहउ वइरायरे वज्जलाहु ॥2 सुलहठ माणसस₹ कमलसंड ॥3 सुलहउ पाहाणे हिरण्णखंडु ॥4 सुलहउ गयणंगणे उडुणिहाउ ॥5 सलहउ ईसासे जणे कसाउ ॥6 सुलहउ वरलक्खणे पयसमासु ॥7 सुलहउ सुकईयण मइविसेसु ॥8.
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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