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________________ चलु चोरु धि? गुरुमायबप्पु मारणइ ण इठ्ठ ॥ 23 रिणयभुयबलेण वंचइ ते अवर वि सो छलेण ॥ 24 भयकूवि छूढ गउ रिणद्दभुक्खु पावेइ मूढ ॥ 25 पद्धडिय एह सुपसिद्धी पामें विज्जलेह ॥ 26 घत्ता-पावेज्जइ बंधै वि रिणज्जइ वित्यारैवि रहें चच्चरें। वंडिज्जइ तह खंडिज्जइ मारिज्जइ पुरवाहिर ॥27 परवसुरयहो अंगारयहो इय णिऍवि जणो तो विमूढमणो जो परजुवइ इह अहिलसइ सहिऊरण जए रिणवडइ गरए परयाररया चिरु खयहाँ गया 2.11 सूलिहिँ भरणं जायं मरणं ॥1 चोरी करइ एउ परिहरइ ॥2 सो णीससइ गायइ हसइ ॥3 होऊ अबुहा रामण पमुहा ॥4 सत्त वि वसणा एए कसणा ॥5 8.7 इयरह दिव्वाहरणहँ पासिउ हरिवि गीय जा किर दहवयरणे तह अरणंतमइ सीलगुरुक्किय रोहिरिण खरजलेण संभाविय हरि-हलि-चक्कवट्टि-जिरणमायउ एयउ सीलकमलसरहंसिउ जरपरिणऍ छारपुंजु वरि जायउ सीलवंतु बुहयणे सलहिज्जा सीलु वि जुवइहँ मंडणु मासिउ ॥1 सीले सीय दड्ढ गउ जलणे ॥2 खगकिरायउवसग्गहें चुक्किय ॥3 सीलगुणेण गइऍ रण वहाइय ॥4 प्रज्ज वि तिहुयणम्मि विक्खायउ ॥5 फणिणरखयरामरहिं पसंसिउ ॥6 एउ कुसोलु मयरणेणुम्मायउ ॥7 सोलविज्जिएण किं किज्जइ ॥8 58 ) [ अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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