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तं रिसुणेवि पहारणउ 'एत्तिउ रुमि दसासहों एग सरीरें विराय - थाणें
सुरचावेरण व प्रथिर - सहावें
रम्भा - गब्भेण व गोसारें तर रग चिण्णु मरण - तुरउ रण खञ्चि वउ र धरिउ महु रग किउ रिणवारिउ
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भणइ विहीसरण - रारणउ ।
भरिउ भुवणु जं प्रयस हों ॥ 1 दिट्ठ- णट्ठ - जल- विन्दु- समाणें ॥ 2 तडि-फुरण व तक्खरण - भावें ॥3 पक्व फलेग व उरगाहारें ॥4 मोक्खु रग साहिउ राहु ण अञ्चिउ || 11 अप्पर किउ तिरण - समउ गिरारिउ' ।। 12
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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