SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय वाङमय के लोकभाषा काव्य में स्वयंभू सर्वोत्कृष्ट कवि सिद्ध होते हैं । उन्होंने जनसामान्य की भाषा अपभ्रंश में काव्य रचना कर साहित्य के क्षेत्र में अपभ्रंश को गौरवपूर्ण स्थान दिलाया। लोकभाषा अपभ्रंश को उच्चासन पर प्रतिष्ठित कराने का श्रेय स्वयंभू को ही है। विशेष अध्ययन के लिए सहायक ग्रन्थ - 1. पउमचरिउ भाग 1-5, महाकवि स्वयंभू, संपा.-हरिवल्लम मायाणी, अनु.-डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली । 2. रिट्ठणेमिचरिउ-भाग-1,महाकवि स्वयंभू, सम्पा.-अनु.-डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली । 3. हिन्दी काव्यधारा-डॉ. राहुल सांकृत्यायन, प्रकाशक-किताब महल, इलाहाबाद । 4. जैनविद्या (शोध पत्रिका)-1, स्वयंभू विशेषांक, अप्रेल-1984, प्रकाशक-जैन विद्या संस्थान श्रीमहावीरजी, भट्टारकजी की नसियां, सवाई रामसिंह रोड, जयपुर-4 । 5. अपभ्रंश भारती (पत्रिका)-1, स्वयंभू विशेषांक, जनवरी-1990, प्रकाशक-अपभ्रंश साहित्य अकादमी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, भट्टारकजी की नसियां, सवाई रामसिंह रोड, जयपुर-41 6. महाकवि स्वयंभू-डॉ. संकटाप्रसाद उपाध्याय, प्रकाशक-भारत प्रकाशन मन्दिर, अलीगढ़ । 4 ] [ अपभ्रंश काव्य सौरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy