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________________ बोप्पडि घी, तेल प्रादि लगा चेष्टाएं चिट्ठ करि देहि खिला . सुमधुर प्राहार सुमिट्टाहार (चोप्पड) विधि 2!! सक (चिट्ठा) 2/2 (कर) विधि 2/1 सक (दा) विधि 2/1 सक [(सुमिट्ठ) (आहार)] [(सुमिट्ठ) वि-(आहार) 2/1] (सयल) 1/1 वि अव्यय (देह) 4/1 (रिणरस्थ) 1/1 वि (गय) भूकृ 1/1 अनि सयल वि देह णिरत्य गय जिह दुज्जरपउवयार सब कुछ ही देह के लिए व्यर्थ हुआ जिस प्रकार दुर्जन के प्रति (किया गया) उपकार जव्यय [(दुज्जण)-(उवयार) 1/17 13. अथिरेण थिरा मइलेण रिणम्मला रिणग्गुरोग (अथिर) 3/I वि (थिर→(स्त्री) थिरा)1/1 वि (मइल) 3/1 वि (रिणम्मल-→(स्त्री) णिम्मला) 11 दि (णिग्गुण) 3/1 वि [(गुण)-(सार→सारा) 1/1 वि] अस्थिर स्थिर मलिन निर्मल गुरगरहित गुरणों (की प्राप्ति) के लिए श्रेष्ठ शरीर से गुणसारा काएपण ना विढप्पड़ उदय होती है (काअ) 3/1 (जा) 1/1 सवि (विढप्प) व 3/1 अक (ता) 1/1 सदि (किरिया) 1/1 अव्यय अव्यय (कायव्य) विधिक 1/1 अनि किरियह क्रिया क्यों नहीं की जानी चाहिए कायब्वा 14. अव्या बुझिउ रिगच्च (अप्प) 1/1 (बुज्झ→बुज्झिय) भूकृ 111 (णिच्च) 1/1 वि अव्यय [[(केवलणाण)-(सहा) I/1] वि अव्यय (पर)6/1वि आत्मा समझी गई नित्य यदि केवलज्ञान स्वमाववाली केवलरणारासहाउ पर 1881 [ अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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