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पाठ-14
हेमचन्द्र के दोहे
1. सायरु
उप्परि तणु
सागर ऊपर घास-फूस को रखता है
धरइ
तलि घल्लई रयणाई सामि सुभिच्चु वि.रिहर संमारणे खलाई
(सायर) 1/1
अव्यय (तण) 2/1 (धर) व 3/1 सक (तल) 7/1 (घल्ल) व 3/1 सक (रयण)2/2 (सामि) 1/1 (सु-भिच्च) 2/1 (वि-परिहर) व 3/| सक (संमारण) व 3/1 सक (खल) 2/2
फैक देता है रत्नों को राजा गुणवान सेवक को त्याग देता है सम्मान करता है दुष्ट सेवकों को (का)
दूरुड्डाणे
ऊंचाई से, उड़ने के कारण गिरा हुआ
पडिउ
खलु
दुष्ट
अप्पणु
मारे।
[(दूर) + (उड्डाणे)] दूर (क्रिविअ), उड्डाणे (उड्डाण)1 7/1 (पड→पडिअ) भूक 1/1 (खल) 1/1 वि (अप्पण) 2/1 (जण) 2/1 (मार) व 3/1 सक अव्यय [(गिरि)-(सिंग) 5/2] (पड→पडिअ→(स्त्री) पडिआ) 1/1 (सिला) 1/1 (अन्न) 2/1 वि अव्यय (चूर) 2/1 (कर) व 3/1 सक
अपने को मनुष्य को (मनुष्यों को) नष्ट करता है जिस प्रकार पर्वत की शिखा से गिरी हुई शिला अन्य को
गिरि-सिंगहुँ पडिअ सिल
अन्तु वि
भी
टुकड़े-टुकड़े कर देती है
करे
3.
जो
गुण
(ज)1/1 सवि (गुण) 2/2 (गोव) व 3/1 सक
गुणों को छिपाता है
गोवई
1. कभी-कभी ततीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है(हे.प्रा.व्या.3-135)।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ।
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