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बहु-सुह-छपणउ
एम
मणिवि
परवाज 1
कउ
164 1
[ ( बहु) वि - ( सुह ) - (छण्णअ) भूकृ 1 / 1 अनि
'अ' स्वा.]
1. प्रणिपत पणवाअ प्रणाम ।
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अव्यय
(भरण + इवि) संकृ
( परणवाअ ) 1/1 (कअ) भूकृ 1 / 1 अनि
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बहुत सुखों से आच्छादित
इस प्रकार
कहकर प्ररणाम किया गया
f
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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