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5.
ཏྠ ཡ ཡཱ ལཱཡཱ ཎྜཱ ཡྻཱ མ བྲཱ ཟླ
गेह-ठाइ
आवासिउ
कमलवत्त
6. मह
སྠཽ ཁ ཋ བྷྲ བྷཱ ཝ ཙྪཱ མ ཡྻ ཝཱ ཧཱ མ
7. इय
भरिणयि
चलरण-कर
मेलवेवि
श्रलिंगs
ज
हेण
लेवि
8. ता
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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}
[ ( ग ) + (आयउ ) ] ण = अव्यय
( आयअ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक [ ( गेह) - ( ठाय ) 7 / 1]
1
अव्यय
(कुमइ ) 1 / 1
( जा जाय जाया ) भूकृ 1 / 1
(तुम्ह ) 6 / 1 स ( एता) 1 / 1 सवि
(पुत्त) 8 / 1
अव्यय
( वण) 7/1
(आवास) भूकृ 1 / 1
[[ ( कमल) - ( वत्त) 8 / 1] वि]
( अम्ह ) 16 / 1 स (खंड + इ) संकृ
( गयअ ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक (तुम्ह) 1 / 1 स
अव्यय
(fayar) 7/1 (अम्ह ) 1 / 1 स (पारण) 2/1 (चय) व 1 / 1 सक
अव्यय
अव्यय
( पएस) 7/1
(इअ ) 2 / 1 सवि
( गण ) संकृ
[ ( चलण) - ( कर ) 2/2]
( मेलव + एवि )
( लिंग ) व 3 / 1 सक
अव्यय
(ह) 3/1
( ले + एवि ) संकृ
अध्यय
संकृ
नहीं, पहुंचे निवास स्थान में
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ཙྪཱ
क्यों
कुमति
उत्पन्न हुई
तुम्हारे
यह
हे पुत्र
कि
वन में
रहा गया
कमल के समान मुख वाले
मुझको
छोड़कर
चला गया
न
क्यों
परदेश में
मैं
प्रारण
छोड़ती हूँ
ही
यहाँ (इस)
स्थान पर
यह कहकर
हाथों और पैरों को
मिलाकर
आलिंगन करती है।
1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे. प्रा.व्या. 3-134 ) ।
जब
स्नेह से
उठाकर
तब
[ 157
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